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आत्मा व ज्ञान एक ही हैं। आत्मा का गुण- ज्ञान है, ज्ञान सिर्फ ज्ञाता में है। कर्तृत्व तो जड़ में भी है। जड़ की क्रिया करने वाला जड़ ही है, पर चेतन की क्रिया करने वाला चेतन ही है। ज्ञातृत्व गुण सिर्फ चेतन में है। शब्द जड़ हैं, परन्तु शब्द निकालने वाले के कारण शब्द ज्ञानमय बनते हैं।
जैनधर्म में सर्वज्ञता को स्वीकारा गया है। उपयोग में वह क्रमिक केवलज्ञान है, पर अनुभव में परिपूर्ण है। हमारे अंदर सत्ता में वह ज्ञान (सर्वज्ञ) है, परंतु अभिव्यक्ति में नहीं है, क्योंकि ज्ञान पर आवरण है। बीज में शक्ति है, परंतु अभी वृक्ष की अभिव्यक्ति नहीं हुई।
INNINumRTANTRA
ध्यान दर्पण/89
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