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ध्याता का स्वरूप, ध्यान के लक्षण तथा भेद-प्रभेद बताए हैं। अध्यात्मसार में आर्त्त, रौद्र, धर्मध्यान की विस्तृत रूप से चर्चा की गई है। _आदिपुराण, आचार्य जिनसेनरचित, में राजा श्रेणिक के पूछने पर गौतम गणधर ने ध्यान का व्याख्यान किया था। वर्तमानकालीन आचार्य तुलसी लिखित 'मनोनुशासन' में ध्यान की एक नवीन परिभाषा दी गई है। जैनयोग में आचार्य महाप्रज्ञजी ने अन्तर्यात्रा, तपोयोग, भावनायोग, चैतन्यकेन्द्र, तेजोलेश्या तथा आंतरिक उपलब्धियों का परिज्ञान कराया है। यह कृति जैनयोग व जैन साधना-पद्धति को समझने का एकमात्र माध्यम है। इसके अतिरिक्त आचार्य महाप्रज्ञ ने अपने अन्य ग्रन्थों में भी योग और ध्यान के विविध पहलुओं पर वैज्ञानिक सन्दर्भ में प्रकाश डाला है। जिस प्रकार मन चंचल है, वैसे ही निम्न वस्तुएँ भी चंचल हैं- १. मन २. भँवरा ३. मानिनी स्त्री ४. हवा ५. लक्ष्मी ६. बंदर ७. मछली ८. मेघ और ९. मदन।
ध्यान दर्पण/87
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