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________________ उत्तराध्ययनसूत्र में "जीवो उवओग लक्खणो।" ठाणांगसूत्र में “गुणओ उवयोग गुणो।" तत्त्वार्थसूत्र में उपयोगो लक्षणम्' कहा गया है। उपयोग के दो भेद हैं १. साकार उपयोग (सविकल्प) और २. निराकार उपयोग (निर्विकल्प) साकार उपयोग वस्तु के विशेष स्वरूप को ग्रहण करता है और निराकार उपयोग वस्तु के निराकार उपयोग को ग्रहण करता उत्तराध्ययनसूत्र में आत्मा के लक्षण ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, वीर्य और उपयोग बताए गए हैं, फिर भी आत्मा का असाधारण लक्षण तो उपयोग ही है। उपयोग का अर्थ बोधरूप व्यापार किया जाता है। उपयोग शब्द की उत्पत्ति इस प्रकार से उपयुज्यते वस्तुपरिच्छेदं बोध-रूप व्यापर्यते जीवोऽनेनेत्युपयोगः। ___अर्थात्, जीव जिसके द्वारा वस्तु का परिच्छेद, अर्थात् बोधि-रूप व्यापार करता है या उसमें प्रवृत्त होता है, उसे ही उपयोग कहा जाता है। जीव का मुख्य लक्षण उपयोग ही है। निगोद को जीव की अविकसित अवस्था मानी जाती है। क्या उस अवस्था में उपयोग हो सकता है ? इसके उत्तर में कहा गया है कि निगोद में भी जीव को अक्षर के अनन्तवें भाग जितना ज्ञान अवश्य होता है, क्योंकि इतना भी ज्ञान न हो, तो निगोद के जीव और जड़ में क्या अन्तर रहेगा ? इसका स्पष्टीकरण यह होगा कि संसार में प्रत्येक जीव में उपयोग, अर्थात् ज्ञानात्मक ध्यान दर्पण/79 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003602
Book TitleDhyan Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaya Gosavi
PublisherSumeru Prakashan Mumbai
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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