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________________ आत्मा एक मौलिक तत्त्व है आत्मा एक मौलिक तत्त्व है- यह सिद्धान्त चार्वाक को छोड़कर समस्त भारतीय-दर्शनों ने स्वीकार किया है। उनके अनुसार संसार जड़-चेतन, जीव-पुद्गल या आत्म और अनात्म का संयोग है। डॉ. सागरमल जैन के अनुसार इससे सम्बन्धित चार प्रमुख धारणाएँ हैं। १. मूल तत्त्व जड़ है। उसी से चेतन की उत्पत्ति होती है। चार्वाक दार्शनिक एवं अजितकेशकम्बलिन आदि भौतिकवादी इस मत का प्रतिपादन करते हैं। २. मूल तत्त्व चेतना है और जड़ की सत्ता उसी पर आश्रित मानी जा सकती है। बौद्ध, शंकर, वेदान्त तथा पाश्चात्य विचारक बर्कले इस मत का प्रतिपादन करते हैं। ३. कुछ विचारक ऐसे भी हैं, जिन्होंने उसे जड़-चेतन उभय रूप में स्वीकार किया और दोनों को ही उसकी पर्याय या अवस्था माना। गीता, रामानुज और स्पिनोजा इस मत का प्रतिपादन करते हैं। ४. कुछ विचारक जड़ और चेतन- दोनों को परमतत्त्व मानते हैं और उनके स्वतंत्र अस्तित्व में विश्वास करते हैं। सांख्य, जैन और डेकार्ट इस धारणा में विश्वास करते हैं। जैन-दृष्टियों में आत्मा का स्वलक्षण उपयोग अर्थात् ज्ञान-दर्शन है। दूसरे शब्दों में, ज्ञातादृष्टा-भाव ही आत्मा का निजगुण है। समयसार नाटक की ११वीं गाथा मोक्षद्वार तथा नियमसार की १०२वीं गाथा में कहा गया है चेतन लक्षण आत्मा, आत्तम सत्त माहि। सत्ता परिमित वस्तु है, भेद तिहुं मे नाहि।। ध्यान दर्पण/75 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003602
Book TitleDhyan Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaya Gosavi
PublisherSumeru Prakashan Mumbai
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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