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________________ एक गांव में पति-पत्नी अपने घर के आँगन में सोए हुए थे। वहाँ एक चोर आया। वह चोर दीवार पर चढ़ा। पत्नी ने किसी का सिर देखा, तो वह अपने पति से कहने लगी- 'देखो जी, कोई अपने घर के अंदर जा रहा है।'' पति ने कहा- “मैं देख लूंगा।'' पत्नी फिर से कहने लगी- "देखो, अब तो घर के अंदर चोर गया है, कुछ कीजिए।'' पति लेटे-लेटे बोला"मुझे बात पता है। ज्यादा बड़बड़ मत कर।'' चोर घर के अंदर से पोटली बांधकर निकल रहा था। पत्नी फिर झटके से बोली"वह देखो, चोर हमें लूटकर जा रहा है।'' पति-पत्नी ने बातें की, लेकिन चोर के बारे में कुछ नहीं किया। वे सिर्फ पछताते रहे। कहीं हमें भी पछताना न पड़े। हमें जागना चाहिए। हमारी वासनाएँ, इच्छाएँ, उमंगें कभी-भी समाप्त नहीं होती। एक इच्छा पूरी हुई, तो दूसरी सामने खड़ी होती है। तृष्णा का जन्म दुःख का कारण है, यह गौतम बुद्ध ने बताया। माया मरी न मन मरा, मर मर गए शरीर। आसा तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर।। कई लोग पूछते हैं- “क्या दररोज सत्संग की जरूरत है? हम दररोज अच्छा कार्य करते हैं, पुण्य करते हैं, मंदिर जाते हैं, क्या वह ठीक नहीं है?'' यही प्रश्न कबीर से एक व्यक्ति ने पूछा, पर कबीर चुप रहे और उन्होंने एक कील पर हथौड़े से प्रहार किया। वह आदमी कुछ समझ न पाया। दूसरे दिन वह व्यक्ति फिर उसी प्रश्न के उत्तर के लिए कबीर के पास गया। कबीर ने बिना कुछ कहे फिर उसी कील पर जोर से हथौड़ा मारा। जब वह आदमी कुछ समझ न सका, तो कबीर ने उससे कहा- “कील को संस्कार से पक्का किया है।'' इस दुनिया में हमारा कोई नहीं है। हम अकेले आए हैं और अकेले ही जाएँगे, खाली हाथ ही जाएँगे। ये रिश्ते, ये संयोग, सभी थोड़े समय के हैं। वे भी हर पल बदलते रहते हैं। आज जो बात है, जैसी है, ध्यान दर्पण/69 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003602
Book TitleDhyan Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaya Gosavi
PublisherSumeru Prakashan Mumbai
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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