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स्वामी विवेकानंद ने आध्यात्मिक-साधना को मानवसेवा से जोड़ा। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने काव्य से, तो अरविन्द घोष ने योग से अध्यात्म–जगत् में प्रवेश किया। ताओ धर्म में सद्गुणों को ही मुख्य माना है । कन्फ्यूशियन्स - धर्म भी नैतिकता को प्राधान्य देता है। पारसी - धर्म दया, दान, न्याय का अंगीकार करने को कहता है । इस्लाम धर्म उपवास, हज, नमाज, जकात को ही मुख्य मानता है।
जिन्हें यश की प्राप्ति करना है, वे कठोर परिश्रम, तपस्या और साधना द्वारा ही उसे प्राप्त कर सकते हैं। किसी शायर ने कहा है
'जिसे छाले से डर है,
वे यश के शिखर नहीं चूमते ।
मंजिल तक पहुँचाने वाली सड़क
मखमली नहीं होती । '
जिन्हें कष्ट से डर लगता है, वे यश के शिखर पर नहीं चढ़ते। उन्हें तो छालों से डर लगता है और उस सड़क पर तो पत्थर ही पत्थर हैं, मखमल नहीं ।
एक संन्यासी था । एक दिन दो चोर उसकी कुटिया में घुसे । उसकी कुटिया बहुत ही पुरानी थी । कुटिया में एक फटी चादर के सिवाय कुछ भी नहीं था । संन्यासी जाग रहा था। वह चादर ओढ़कर लेटा हुआ था। चोरों ने इधर-उधर ढूँढा, पर उन्हें कुछ भी नहीं मिला, तो संन्यासी ने उठकर कहा- “मेरे पास तो इस चादर के सिवाय कुछ भी नहीं है। आप इसे ले जाइए। अगर आप लोग मुझे पहले बताते, तो मैं कुछ उधार लाकर कुटिया में आपके लिए रख देता, ताकि आप उसे ले जाते, पर आपने ऐसा किया नहीं, इस कारण इस चादर को ही ले जाइए।" चोर शर्मिंदा हुए। वे कुटिया से निकल ही रहे थे कि संन्यासी ने उनके
ध्यान दर्पण / 65
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