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________________ सर्वोत्तम ध्यान उसे कहते हैं, जो सहज-स्वाभाविक रूप से हो। योगीराज अरविन्द के अनुसार ध्यान का सबसे उत्तम विषय है'ब्रह्म'। ब्रह्म की भावना उच्चतम है। सर्वप्रथम मन को दोनों भौंहों के बीच एकाग्र करना, यह स्थान अन्तर्मन, संकल्प का केन्द्र है। दूसरी पद्धति है-मस्तक में, मनोमय केन्द्र में अपनी सारी चेतना को ले जाकर एकाग्र करना। तीसरी पद्धति है- हृदय-केन्द्र पर ध्यान करना। हृदयचक्र पर एकाग्रतापूर्ण ध्यान करने से हृदय चैत्य-पुरुष के लिए खुलता है। योगी अरविन्द के अनुसार निर्विकल्प समाधि का ठीक-ठीक अर्थ है- पूर्ण समाधि, जिसमें कोई विचार नहीं होता, चेतना की कोई गति नहीं होती, अथवा न ही भीतरी वस्तुओं का कोई ज्ञान रहता है, सब कुछ खींच कर विश्वातीत परात्पर में चला जाता है। इसका अर्थ है- मन से परे चेतना में समाधि। भगवान् से सम्पर्क प्राप्त करने के लिए समाधि में रहना आवश्यक नहीं है। आवश्यकता है, अधिकाधिक सचेतन बनाने की। आचार्य योगीन्दुदेव ने योगसार में कहा है- जो आत्मा के शुद्ध स्वरूप को जानता है, वह पर के ऊपर रही हुई ममत्व-बुद्धि का त्याग करता है; वह पंडित आत्मा या अन्तरात्मा है। आत्मा-अनात्मा का विवेक ही प्रमुख तत्त्व है। ___ बहुत पुरानी कहावत है- 'दिया तले अंधेरा।' जगत् के लिए यह कहावत चाहे कितनी ही प्राचीन हो, परन्तु अर्वाचीन मानव के लिए वह आज भी उतनी ही सत्य है, उसके अंतर्जगत् की साक्ष्य है। मानव पहुँचा है- चाँद-तारों पर, ग्रहों-उपग्रहों तक, पर नहीं पहुंच पाया, अपने अंतरतम स्वरूप तक। जान लिया सब कुछ- पौधे, पेड़, पर्वत, समुंदर, हवाईजहाज, शरीर के अंग-प्रत्यंग, देश-विदेश, पर अनजान रह गया अपने आप से। 38/ध्यान दर्पण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003602
Book TitleDhyan Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaya Gosavi
PublisherSumeru Prakashan Mumbai
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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