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है । इस देखने-जानने के स्वभाव को, स्वच्छ और स्वस्थ पद्धति को ही 'ध्यान' कहते हैं ।
पुरिसा ! अन्ताणमेव अभिणिगिज्झ, एवं दुक्खा पमोक्खसि ।
आत्मा शब्द का प्रयोग चैतन्य पिण्ड के अर्थ में होता है। अभिनिग्रह का अर्थ है- समीप जाकर पकड़ना । जो व्यक्ति मन के समीप जाकर उसे पकड़ लेता है, उसे जान लेता है, वह सब दुःखों से मुक्त होता है। निकटता से जान लेना ही वास्तव में पकड़ना है । नियंत्रण करने से प्रतिक्रिया पैदा होती है।
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ध्यान दर्पण / 33
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