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________________ शास्त्रों की युक्ति-प्रयुक्तियाँ और तर्क भले ही आत्मा का अस्तित्व सिद्ध करें, बौद्धिक-कुशाग्रता भले ही नास्तिक हृदय में आत्मा की सिद्धि प्रस्थापित कर दे, लेकिन यह निर्विवाद सत्य है कि आत्मा को जानना शास्त्र के बस की बात नहीं है। आत्मा को समझा जा सकता है, विशुद्ध अनुभव से। आत्मा का अनुभव किया जा सकता है, इन्द्रियों के उन्माद से मुक्त होकर। आत्मा को प्राप्त किया जा सकता है, शास्त्र और तर्क से ऊपर उठकर। णाहं होमि परेसिं, ण मे परे संति णाणमहमेक्को। इदि जो झायदि झाणे, सो अप्पाणं हवदिं झादा।। अर्थ- वही श्रमण आत्मा का ध्याता है, जो ध्यान में चिन्तन करता है कि 'मैं' न 'पर' का हूँ, न 'पर' पदार्थ या भाव मेरे हैं, मैं तो एक ज्ञानमय हूँ। जिसने आत्मा को जानने-समझने और पाने का मन-ही-मन दृढ़ संकल्प किया है, उसे इन्द्रियों के कर्णभेदी कोलाहल को शांत-प्रशांत करना चाहिए, शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श की दुनिया से मन को दूर-दूर अनजाने प्रदेश में ले जाना चाहिए, तभी विशुद्ध अनुभव की भूमिका प्राप्त होगी। हमें आत्मा के अलावा दूसरे को पहचानने की जिज्ञासा नहीं होना चाहिए। आत्मा-प्राप्ति के सिवाय अन्य कोई प्राप्ति की तमन्ना नहीं होना चाहिए, अन्यथा आत्मानुभव का पावन क्षण प्रकट होना दुर्लभ है। ध्यानात् आत्मानुभूतिश्च। ध्यानात् सम्यक्त्वामिश्यते।। ध्यानाम् विज्ञान चारित्रं । ध्यानं मोक्षस्य कारणं।। 22/ध्यान दर्पण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003602
Book TitleDhyan Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaya Gosavi
PublisherSumeru Prakashan Mumbai
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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