________________
सम्बन्धित ऐसी कई बातें हैं, जिनका साक्षात्कार हमारी किसी भी इन्द्रिय के द्वारा नहीं हो सकता। ऐसे ही तत्त्वों और पदार्थों को 'अतीन्द्रिय' कहा गया है।
ऐसे अतीन्द्रिय पदार्थों के वास्तविक स्वरूप का निर्णय मानव किस तरह कर सकता है ? भले ही वह विद्वान् हो या अत्यंत बुद्धिमान्। विद्वान् अथवा बुद्धिमान् अतीन्द्रिय पदार्थों का दर्शन नहीं कर सकता। आज के युग में किसी भी बात अथवा तत्त्व को तर्क या बुद्धि के माध्यम से समझाने का आग्रह बढ़ता जा रहा है। बुद्धि और तर्क से समझा जाए और इन्द्रियों से जिसका अनुभव किया जा सके, उसे ही स्वीकार करने की वृत्ति प्रबल होती जा रही है। बुद्धि अपने-आप में कभी परिपूर्ण नहीं होती, वह अपूर्ण ही होती है, अतः पूर्ण चैतन्य के साक्षात्कार के बिना, अथवा उस पर श्रद्धा प्रस्थापित किए बिना किसी समस्या का हल असंभव है।
अतीन्द्रियं परं ब्रह्म विशुद्धानुभवं बिना।
शास्त्रयुक्तिशनेनापि न गम्यं यद् बधाजगुः।। अर्थ- पंडितों का कहना है कि इन्द्रियों से अगोचर परमात्मा का स्वरूप विशुद्ध अनुभव के बिना समझना असंभव है, फिर भले ही उसे समझने के लिए तुम शास्त्र की सैकड़ों युक्तियों का प्रयोग करो।
इन्द्रियों की इतनी शक्ति नहीं है कि वे शुद्ध ब्रह्म को समझ सकें। किसी भी प्रकार के आवरणों से रहित विशुद्ध आत्मा का अनुभव करने की क्षमता बेचारी इन्द्रियों में कहां संभव है? अर्थात् कान शुद्ध ब्रह्म की ध्वनि सुन न सकें, आँखें उसके दिव्य रूप को देख न सकें, नाक उसको सूंघ न सके, जिह्वा उसका स्वाद न ले सके और चमड़ी उसका स्पर्श कर न सके।
ध्यान दर्पण/21
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org