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८ चाक्षुण-केन्द्र (आंखों के भीतर) ९ अप्रमाद-केन्द्र (कानों के भीतर) १० दर्शन-केन्द्र (भृकुटियों के मध्य में) ११ ज्योति-केन्द्र (ललाट के मध्य में) १२ शांति केन्द्र (मस्तिष्क का अग्रभाग) १३ ज्ञान केन्द्र (चोटी का स्थान)
इस प्रकार विचारों की प्रेक्षा, समता की प्रेक्षा, सहिष्णुता की अनुप्रेक्षा करके हमारे भाव निर्मल हो सकते हैं। प्रेक्षाध्यान की साधना परिवर्तन की साधना है। प्रेक्षाध्यान से चित्त की एकाग्रता व प्रसन्नता, ज्ञाता-द्रष्टाभाव का विकास, धार्मिकता के लक्षणों का प्रकटीकरण, प्रज्ञा और चैतन्य का जागरण, कर्मतंत्र और भावतंत्र का शोधन, कर्मों की निर्जरा, चैतन्य का साक्षात्कार आदि संभव हैं। ध्यान-मार्ग की रुकावटें१) रोग
आलस्य ३) प्रमाद
संशय, भ्रम ५) विषयासक्ति
भ्रमिष्टता ७) अस्थिरता
अरुचि।
132/ध्यान दर्पण
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