SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ध्यान का फल आज तक जितने भी महान् संत हुए, उन्होंने चित्त को निर्मल बनाकर ध्यान में एकाग्रता लाई। स्वयं का शोधन करते-करते वे स्वयं को प्राप्त हुए। ध्यान आध्यात्मिक-उन्नति की एक चमत्कारिक सीढ़ी है, जो साधन को साध्य-प्राप्ति में बहुत सहायक है। इस संसार में अनेक जीवात्मा हैं, जो यह नहीं जानते कि उन्हें क्या चाहिए और उसे कैसे प्राप्त करना है? इस सांसारिक–दुःख और कष्ट तथा सांसारिक- दिनचर्या के अतिरिक्त और भी कुछ है, यह वे जानते नहीं और उसे मानते भी नहीं। इस कारण मैं कहती हूँ कि आध्यात्मिक-जगत् में जाने के लिए स्वयं की परीक्षा करनी ही पड़ेगी। स्वयं को स्वयं से प्रश्न पूछने ही होंगे क्या प्यास लगी आतम की ? क्या भूख लगी मुक्ति की? क्या संसार में लगे बेचैनी? क्या मन में बने हो बैरागी? अगर इनका जबाब हाँ है, तो तुम इस साधना के पात्र हो। तुम भव्य जीव हो, जो नि:शंक होकर साध्य को प्राप्त करोगे। मैं जब भी मेरे मित्र, मेरे रश्तेदार, लोसी, भारतीय लोग, अमेरिका के लोग, इनको सिर्फ पैसा कमाने में, टेलीवीजन देखने में, खाने-पीने में व्यस्त देखती हूँ, तो मैं हैरान रह जाती हूँ। क्या कभी अंदर झाँकने की उन्हें तमन्ना नहीं होती, अभिलाषा नहीं होती? वे कभी चित्रकला में, कभी संगीत की दुनिया में, तो कभी क्रीड़ा-जगत् में ही मस्त रहते हैं। ध्यान दर्पण/133 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003602
Book TitleDhyan Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaya Gosavi
PublisherSumeru Prakashan Mumbai
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy