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________________ आधार और स्वरूप देखना । प्रेक्षाध्यान 'प्रेक्षा' शब्द 'ईक्ष्' धातु से बना है। इसका अर्थ है — प्र + ईक्षा = प्रेक्षा, इसका अर्थ है गहराई में उतरकर देखना । 116 / ध्यान दर्पण Jain Education International "संपिक्खए अप्पगमप्पएणं" आत्मा के द्वारा आत्मा की संप्रेक्षा करो। मन के द्वारा सूक्ष्म मन को देखो, स्थूल चेतना के द्वारा सूक्ष्म चेतना को देखो। 'देखना' ध्यान का मूल तत्त्व है, इसलिए इस ध्यान -पद्धति का नाम 'प्रेक्षा - ध्यान' रखा गया है। - जानना और देखना चेतना का लक्षण है । आवृत्त चेतना में जानने और देखने की क्षमता क्षीण हो जाती है । उस क्षमता को विकसित करने का प्रमुख सूत्र है - 'जानो और देखो' । 'चिन्तन, विचार या पर्यालोचन करो'- यह बहुत गौण और बहुत प्रारम्भिक है। यह साधना के क्षेत्र में बहुत आगे नहीं ले जाता । 'आत्मा के द्वारा आत्मा को देखो'- यह अध्यात्म-चेतना के जागरण का महत्वपूर्ण सूत्र है । इस सूत्र का अभ्यास हम शरीर से प्राप्त करते हैं। आत्मा शरीर में है, इसलिए स्थूल शरीर को देखे बिना आगे नहीं देखा जा सकता । श्वास शरीर का ही एक अंग है । हम श्वास से जीते हैं, इसलिए सर्वप्रथम श्वास को देखें। हम शरीर में जीते हैं, इसलिए शरीर को देखें । शरीर के भीतर होने वाले स्पन्दनों, कम्पनों, हलचलों या घटनाओं को देखें। इन्हें देखते-देखते मन पटु हो जाता है, सूक्ष्म हो जाता है, फिर अनेक सूक्ष्म स्पन्दन दिखने लग जाते हैं । वृत्तियाँ या संस्कार जब उभरते --- - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003602
Book TitleDhyan Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaya Gosavi
PublisherSumeru Prakashan Mumbai
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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