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१०.हेतुविचय
तर्क और युक्ति का अवलंबन करते हुए स्याद्वादरूप शैली का आश्रय लेकर तत्त्व-चिंतन करने को हेतुविचय कहा गया है।
संस्थानविचय-धर्मध्यान के दो प्रकार हैं
(१) सालम्बन - आलम्बन सहित (२) निरालम्बन - आलम्बन रहित।
सालम्बन ध्यान के चार प्रकार हैं – (१) पदस्थ (२) पिण्डस्थ (३) रूपस्थ (४) रूपातीत। (१) पदस्थ - पदस्थ-ध्यान में मंत्र-वाक्य के आलम्बन से होने वाली एकाग्रता होती है। (२) पिण्डस्थ - पिण्डस्थ-ध्यान में पिण्ड के आलम्बन से शरीरगत आत्मा का चिंतन किया जाता है। (३) रूपस्थ - रूपस्थ-ध्यान में समवशरण में स्थित अरिहंत का ध्यान किया जाता है। (४) रूपातीत – रूपातीत ध्यान में अरूपी सिद्ध परमात्मा का ध्यान किया जाता है। मैं शुद्ध हूँ'-इसका ध्यान किया जाता है। पिण्डस्थ-ध्यान -
पिण्डस्थ-ध्यान में शरीर के अवयवों का आलम्बन लिया जाता है। आत्मा और शरीर में एकत्व नहीं है, किंतु उनका संयोग है। आत्मा चेतन है और शरीर अचेतन, अतः आत्मा और शरीर स्वरूप की दृष्टि से भिन्न हैं। शरीर आत्मा की अभिव्यक्ति और प्रवृत्ति में सहयोग करता है, इसलिए उसमें सर्वथा भेद भी नहीं है। इस दृष्टि से शरीर और आत्मा न केवल चेतन और न केवल अचेतन हैं, किन्तु चेतन और अचेतन का
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ध्यान दर्पण/105
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