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गर्वपूर्वक डींग मारते रहने का भाव रौद्रध्यान है। १. हिंसानन्द रौद्रध्यान -
जीवों के समूह को अपने से तथा अन्य के द्वारा मारे जाने पर, पीड़ित किए जाने पर तथा ध्वंस करने पर और घातने के संबंध मिलाए जाने पर जो हर्ष माना जाए, उसे पहला हिंसानंद नामक अप्रशस्त रौद्रध्यान कहते हैं। निरंतर निर्दय स्वभाव वाले तथा स्वभाव से क्रोध-कषाय से प्रज्वलित व मद से उन्मत्त, पाप-बुध्दि वाले कुशील व व्यभिचाररूप पाप में प्रवृत्त नास्तिकों को यह रौद्रध्यान होता है। इस जगह जीवों का घात किस उपाय से हो? यहाँ जीव-हिंसा करने में कौन समर्थ है? ये जीव कितने दिनों में मारे जाएंगे? जीव-हिंसा में किसका अनुराग है? जीवों को मारकर, बलि देकर कीर्ति और शांति के लिए ब्राह्मण, गुरु और देवों की पूजा करना है – इस प्रकार से जीवों की हिंसा में आनंद मानने वाले व्यक्ति को यह हिंसानंद नामक अप्रशस्त रौद्र-ध्यान होता है। २. मृषानन्द रौद्रध्यान -
मनुष्य असत्य या झूठी कल्पनाओं के समूह से पापरूपी मैल से मलिन चित्त होकर झूठ बोलने में रुचिपूर्वक जो कुछ चेष्टा करता है, उसे मृषानन्द नामक अप्रशस्त दूसरा रौद्रध्यान कहा गया है। मैं अदोषियों में दोषों को सिद्ध करके अपने असत्य सामर्थ्य के प्रभाव से दुश्मनों का राजा आदि के द्वारा घात करवाऊँगा और असत् प्रयोगों से अन्य जनों को प्रताड़ित करवाऊँगा, इस प्रकार से सोचने वाले को गृपानन्द रौद्रध्यान होता है। ३. चौर्यानन्द रौद्रध्यान - - जो चित्त चतुरता एवं चोरी के कार्यों में ही तत्पर रहता हो
100/ध्यान दर्पण
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