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________________ प्रतिज्ञा - २ ५६५ धर्म हिंदु धर्म में सम्मिश्रित हो कर एक मेक हो जायेगा या नष्ट हो जायेगा, ऐसा भय मुझे किंचित भी नहीं है । " मात्र ये ही नहीं अपितु स्वयं महात्मा गांधी के उत्तराधिकारी के रूप में विख्यात् आदरणीय विनोबा भावे जी का भी मत विचित्र था । उन्होंने अपने अत्यंत स्पष्ट रूप से लिखा कि- "श्वास रुक जाने पर जो आत्मा की स्थिति होती है, वही जैन नाम मिट कर यदि जैन समाज की हो जाय तो भी कोई हानि नहीं है । ' "" इन तथाकथित मंत्रियों व समाजसेवियों को भी पुनः बल जैनधर्मावलम्बियों की फूट का ही था, जिनके संबंध में पंडित सुमेरूचंद्रजी कड़े शब्दों में लिखते हैं : 'उस समय बड़ा विचित्र वातावरण था । महाराज के समक्ष अपनी भक्ति की दुहाई देने वाले अनेक धनी-मानी लोग परोक्ष में यही कहते थे कि महाराज ने व्यर्थ में अन्नत्याग करके वज्र तुल्य शासन से सिर रगड़ने का कार्य किया । ऐसे लोगों से मुझे अनेक बार मिलने का मौका मिला।' निश्चित ही पाठक वर्ग को जैनधर्मावलम्बियों की शोचनीय स्थिति का अनुमान हो गया होगा !! किंतु आचार्य श्री हारने वालों में से नहीं थे । इस विषय में बम्बई सरकार पर दबाव बनाने के लिये आचार्य श्री ने शिरगूरकरजी पाटील को पुनः याद किया, जो कि उस समय दिल्ली में थे || दिल्ली उनके पास संदेश भिजवाया गया | शिरगूरकर पाटीलजी भैयासाहब श्री राजकुमार सिंहजी कासलीवाल (इंदौर) व धर्मवीर सर सेठ श्री भागचंदजी सोनी (अध्यक्ष- महासभा) के साथ श्री मौलाना आजादजी से मिले || मौलाना आजादजी ने अत्यंत आदर के साथ आचार्य श्री के चरणों में विनय प्रस्तुत करते हुए निवेदन किया कि इस विषय में बम्बई सरकार के साथ लिखा-पढ़ी हुई है व चल भी रही है । जिस प्रकार आचार्य श्री के चरण प्रसाद एवं शुभाशीर्वाद से जैन समाज को केंद्रिय सरकार से विजय प्राप्त हुई है, उसी प्रकार उनका तपोबल बम्बई सरकार को भी सुबुद्धि प्रदान कर प्रतिज्ञा पूर्ती का शीघ्र सुअवसर प्रदान करायेगा, ऐसी हम कामना करते हैं । किंतु सुबुद्धि नहीं आई ॥ इन निराशाजनक स्थितियों में एक प्रकार से हम कह सकते हैं कि आचार्य श्री का ज्ञानबल, चारित्रबल, तपोबल व मंत्रबल काम आया । इन्हीं बलों के कारण आचार्य श्री के साथ-साथ गमन करने वाले अतिशय ने इशारा दिया कि इस समस्या के समाधानार्थ अब बम्बई सरकार के साथ परिश्रम करने की अपेक्षा उच्च न्यायालय की शरण ली For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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