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________________ ५६४ चारित्र चक्रवर्ती भोजन व एकासन प्रतिज्ञ व्यक्तित्व के रूप में दिये गये परिचय ने भी खासा प्रभाव डाला व सिद्ध किया कि शब्द ही नहीं, चारित्र भी बोलता है। इतना ही नहीं, अपितु इस परिचय ने आचार्य श्री के व्यक्तित्व को भी निखारा कि जिनका शिष्य ऐसा है, वह महामना कैसा होगा? (पंडितजी के इसी व्यक्तित्व व आचार्य श्री की उन पर विश्वनीयता को दर्शाता स्वयं पं. सुमेरूचंद्रजी दिवाकर का पंडितजी के देहावसान के पश्चात् उनके छोटे भाई श्री माणिकचंदजी काला को प्रेषित पत्र भी इस लेख के अंत में मुद्रित करवाया गया है।) उपर्युक्त क्रियाकलाप के समाचार सर्वत्र प्रसारित हो ही गये थे ।। संपूर्ण भारतवर्ष में उल्लास और उत्साह का वातावरण निर्मित हो गया था ।। चारों ओर से पंडितजी व शिरगूरकरजी का साधुवाद किया जाने लगा। ___जब पाँच माह पश्चात् आचार्यश्री के पास पंडितजी गजपंथा (म्हसरूलनासिक,महा.)लौटे, तब जैन समाज द्वारा स्टेशन पर ही उनका वह स्वागत हुआ, जिसके विषय में कह सकते हैं कि 'न भूतो न भविष्यति॥' __यह तो ठीक, किंतु इस विषय में आचार्यश्री का आशीष इतना-इतना-इतना मिला कि पंडितजी व शिरगुरकर पाटील का यश सात समंदरों के पार पहुँच गया। इस विजय यात्रा के पश्चात् आचार्यश्री से जिन-जिन ने इस कार्य के निर्विघ्न संपन्न होने को जो-जो त्याग लिया था, उन सभी से वह-वह द्रव्य ग्रहण करने की आज्ञा दे कर कार्य निर्विघ्न संपन्न हो गया का एक प्रकार से आचार्य श्री ने उद्घोष ही कर दिया, किंतु स्वयं ने अन्न नहीं लिया, क्योंकि बम्बई सरकार(महाराष्ट्र सरकार) केन्द्रिय सरकार द्वारा निर्देशित अर्थ की पुष्टी नहीं कर रही थी। उनके अनुसार जैन हिंदु ही थे। यद्यपि मुख्य मंत्री बाळासाहेब खेर जैनियों के पक्ष में थे, किंतु उन्हीं के मंत्री मण्डल के कतिपय मंत्री जैनियों की गणना हिंदुओं से पृथक करने को सहमत नहीं थे। इन कतिपय मुख्यमंत्रियों में प्रथम नाम गृहमंत्री मोरारजी देसाई का था। उनके मत को स्वयं पंडित सुमेरूचंद्रजी ने इन शब्दों में लिखा है : “जैनमन्दिर के विषय में हरिजनों को उतने ही अधिकार प्राप्त हैं, जितने जैनियों को प्राप्त हैं। यदि जैनी मूर्ति का स्पर्श करके पूजा करता है, तो ऐसा हरिजन भी कर सकेंगे।" इस विषय में प्रिमियर ऑटोमोबाइल्स के सर संचालक सुप्रसिद्ध उद्योगपति श्री रतनचंद हीराचंद दोशी(शोलापुर) ने भी बम्बई सरकार से पत्र व्यवहार किया था। उनको प्राप्त प्रत्युत्तर में से बम्बई सरकार के स्पीकर माननीय कुंदनमल शोभाचंद फिरोदिया जी के पत्र का अंश हम यहाँ उद्धृत कर रहे हैं :“आपको जो यह भय है कि संविधान की वर्तमान समीक्षा के अनुसार कि जैन धर्म हिंदु धर्म की शाखा है से या तो जैन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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