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________________ प्रतिज्ञा-२ ५६१ थी, अतः डेप्युटेशन के ३५ में से १८ सदस्य प्रधानमंत्री महोदय के समक्ष उपस्थित हुए। ____ यहाँ यह बतला देना अत्यंत आवश्यक है कि २५ जनवरी १९५० प्रथम गणतंत्र दिवस २६ जनवरी १९५० के ठीक पूर्व का ऐतिहासिक दिन था। इसके द्वारा हम न सिर्फ प्रधानमंत्री महोदय की व्यस्तता की सहज ही कल्पना कर सकते हैं, अपितु शिरगूरकरजी पाटील व पं. तनसुखलालजी की कार्य शैली का भी अहोभाव कर सकते हैं कि उन्होंने दो माह के कार्यकाल में विषय को कितना महत्वपूर्ण बना दिया होगा कि प्रधानमंत्री महोदय अपने अति व्यस्ततम् कार्यकाल में भी समय देने को बाध्य हो गये। प्रधानमंत्री व पंडित कालाजी के मध्य हुए वार्तालाप के साक्षी बने क्षुल्लक श्री सूर्यसिंहजी, प्रिमियर ऑटोमोबाइल्स के सर संचालक सुप्रसिद्ध उद्योगपति श्री रतनचंद हीराचंद दोशी(शोलापुर), भैयासाहेब श्री राजकुमारसिंहजी कासलीवाल(इंदौर), श्रीमान् धर्मवीर सर सेठ भागचंदजी सोनी(अध्यक्ष- श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा), सेठ श्री परसादीलालजी पाटणी(महामंत्री-श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा), सुप्रसिद्ध उद्योगपति श्री गोविन्दराव जी दोशी(कार्यकारी संचालक : रावलगांव शुगर फेक्ट्री, मालेगांव, महा.), उनकी धर्मपत्नी श्रीमती कुमुदिनी गोविन्दराव दोशी आदि। महामना प्रधानमंत्री नेहरू जी को सर्वांग व सर्व प्रकार संतुष्ट किया गया। पंडित कालाजी के वाद कौशल्य ने नेहरूजी को प्रभावित किया व पं. नेहरूजी के मुखारविन्द से संविधान के आर्टिकल २५, धारा २बी के संबंध में इतिहास बदलने वाले ये शब्द मुखरित हुए-“जैन कभी भी हिंदू नहीं थे और न हो सकते हैं।" इस सम्पूर्ण कार्यवाही की प्रत्यक्षदर्शी श्रीमति कुमुदिनी दोशी(धर्मपत्नी सुप्रसिद्ध उद्योगपति व समाज सेवी श्री गोविन्दराव जी दोशी) श्री शिरगूरकरजी पाटील का पत्र ले २७ जनवरी को रावलगाँव में आचार्य श्री के समक्ष पहुँची। आचार्य श्री की प्रसन्नता का माप ही न रहा। फिर भी शिरगूरकर पाटील को आशीर्वाद ज्ञापित करता व केन्द्रिय सरकार के मंतव्य को लिखित रूप में प्राप्त करने हेतु प्रेरणा देता एक पत्र २७ जनवरी को ही स्वयं कुमुदिनी दोशी के हाथों से लिखवाकर प्रेषित किया, जिसे कि हमने इस लेख के अंत में मुद्रित करवाया है। इस पत्र के प्राप्त होने के पूर्व ही दिल्ली में दोनों महामना प्रधानमंत्री कार्यालय से लिखित मंतव्य प्राप्त करने के प्रयास में प्रयत्नशील थे, जिसके फल स्वरूप दिनांक ३१.१.१९५० को प्रधानमंत्री कार्यालय से एक पत्र श्री शिरगुरकर पाटील के नाम से प्रेषित हुआ, जिसमें संविधान के आर्टिकल २५, धारा २बी के मंतव्य को स्पष्ट करते हुए कहा गया था कि जैन धर्म हिन्दू धर्म से सर्वथा भिन्न धर्म है। यद्यपि जैनधर्म की कुछ बातें हिन्दू धर्म से मिलती-जुलती हैं, किंतु यह नितांत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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