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________________ ५६० चारित्र चक्रवर्ती हैं व दूसरा यह कि जैनधर्म हिन्दू धर्म का ही अंग है की सिद्धि में वे क्या-क्या तर्क व प्रमाण दे सकते हैं || आचार्यश्री के पक्ष को खण्डित करने वाले पं. नेहरू द्वारा प्रतिपादित किये जाने योग्य प्रश्नों की फेहरिस्त बनाई गई और उनके पौराणिक, वर्तमानकालिक व पुरातात्विक उत्तर तैयार किये गये ॥ उत्तरों की पुन: कई बार व कई प्रकार से परीक्षा ली गई व सर्व प्रकार से संतुष्ट हुआ गया ।। (जिन प्रश्नों व चर्चाओं का पंडितजी ने पूर्वाभ्यास किया था, ४२ बिंदुओं को हम जैसा का तैसा इस लेख के ठीक पश्चात् दे रहे हैं ।।) साथ एक कार्य और किया गया और वह यह कि भारत भर के जैन धर्म के प्रतिनिधि व्यक्तियों को आचार्य श्री के निर्देशानुसार प्रधानमंत्री कार्यालय से आये निमंत्रण की सूचना दी गई व उनसे निवेदन किया गया कि वे उसमें सम्मिलित होने दिल्ली पहुँचे । सम्पूर्ण भारत भर से प्रतिनिधि दिल्ली पहुँचने लगे, जिनकी ठहरने, भोजन व आवागमन व्यवस्था श्री परसादीलालजी पाटणी ने की ।। २५.१.१९५० को प्रधानमंत्री कार्यालय सम्मुख दिल्ली व बाहर से पधारे उपस्थित प्रतिनिधियों की संख्या कई सौ हो गई । प्रधानमंत्री कार्यालय से निवेदन आया कि २५.१.१६५० को मंत्रणा के लिये निर्धारित काल में प्रधानमंत्री कार्यालय में उपस्थित होने के पूर्व बम्बई के मुख्य मंत्री श्री बाळासाहेब खेर, जो कि उन दिनों दिल्ली में ही थे से मुलाकात कर अपना पक्ष रखें ॥ मात्र ३५ व्यक्तियों के डेप्युटेशन को ही उपस्थित होने की आज्ञा मिल पाई || यहाँ हम कह सकते हैं कि श्री बाळासाहेब खेर से प्रथम मिलने का लाभ यह हुआ कि एक प्रकार से प्रधानमंत्री जी से मिलने से पूर्व प्रधानमंत्री महोदय के लिये की गई तैयारी का पूर्वाभ्यास हो गया, जो कि कल्पनातीत कार्यकारी रहा । चर्चा के पश्चात् आदरणीय खेर साहेब ने पूछा कि वे उनसे क्या चाहते हैं ? डेप्युटेशन का सर्वसम्मति से निवेदन था कि बम्बई सरकार जैनधर्मावलम्बियों की गणना हिन्दुओं में न करें व जैन धर्म को हिन्दु धर्म में पृथक धर्म प्ररूपित करें । इसके उत्तर में उन्होंने कहा कि - " (जैसा कि आपकी प्रस्तुती से सिद्ध हो रहा है, उस अनुसार) यदि केन्द्रिय सरकार द्वारा यह खुलासा कर दिया जाता है कि जैन हिंदु नहीं है, फिर प्रांतीय सरकार को कोई आपत्ती नहीं रह जाती है । " चर्चा पूर्ण होते-होते उन्होंने पुन: कहा कि - "जिस सत्य को आप यहाँ सिद्ध कर रहे हैं, इसे हम बहुत पहले से मानते आये हैं । हमने स्वयं ने पूनम असेम्बली में यह बात कही थी ।" इस चर्चा व निष्कर्ष ने ड़ेप्युटेशन के आत्मबल को दुगुना कर दिया । दुगुने उत्साह से, चूँकि प्रधानमंत्री कार्यालय में १८ व्यक्तियों के डेप्यूटेशन को ही उपस्थित होने की अनुमति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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