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________________ ५६२ चारित्र चक्रवर्ती सत्य है कि जैनधर्म सर्वथा भिन्न धर्म है, जिसकी कि अलग ही पहचान है, जिसे कि संविधान में स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है। इस पत्र को भी यथा स्थिति इस लेख के अंत में ऐतिहासिक साक्ष्यों के रूप में मुद्रित करवाया गया है। इस पत्र के आने के पश्चात् पंडितजी व शिरगूरकरजी दोनों ने अन्य प्रतिनिधियों से मिल कर पुनः मंत्रणा की व सोचा कि ठीक ऐसा ही पत्र यदि शिक्षा मंत्री मौलाना आजाद से भी मिल जाये, तो समझो कार्य फतह हो गया, अतः मौलाना साहेब को पत्र लिखकर प्रधानमंत्री कार्यालय से प्राप्त पत्र पर सम्मती मांगी गई॥ मौलाना साहेब की ओर से तुरंत पत्र प्रेषित हुआ, जिसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से जिक्र किया कि आचार्य श्री चिंता न करें, भारत सरकार उनके साथ है व वे अन्न ग्रहण करें। यह पत्र आचार्य शांतिसागर जी के प्रतिनिधि के रूप में कार्यरत पं. तनसुखलालजी काला के नाम से प्रेषितहुआ। इस पत्र को भी इस लेख के अंत में मुद्रित किया गया है। इतना ही नहीं, अपितु आचार्य श्री के पक्ष में एक कड़ी भारत के गृहमंत्री लौहपुरूष सरदार पटेल की ओर से प्रधानमंत्री कार्यालय के निर्देशों को पुष्ट करने हेतुजोड़ी गई। उन्होंने सेंसस-आयोग(जन-गणना-आयोग) की समीक्षा करते हुए स्पष्ट निर्देश दिया कि जैनों की गणना हिन्दूओं से सर्वथा पृथक की जाये व तदनुसार जनगणना में जैनों का स्वतंत्र कॉलम भी सरकार द्वारा वर्गीकृत कर लिया गया। इस कार्यवाही के पश्चात् तो केन्द्रिय सरकार की ओर से जैनधर्म हिन्दू धर्म से सर्वथा स्वतंत्र व सनातन धर्म है के निर्णय पर सरकारी मोहर लग गई। ___उपर्युक्त दोनों ही पत्र व लौहपुरुष वल्लभभाई पटेल द्वारा सेंसस आयोग को दिया गया आदेश भारत वर्ष के सम्पूर्ण प्रतिनिधि समाचार पत्रों में शिरगूरकर पाटील जी के प्रयासों से प्रकाशित हुआ, जिससे सम्पूर्ण देश के जैनधर्मावलम्बियों में उत्साह व उत्सव जैसे आनंद का संचार हुआ॥ पंडितजी इसके पश्चात् गजपंथा(म्हसरूल, नासिक,महा.) आचार्य श्री के पास सम्पूर्ण विगत का ब्यौरा देने आचार्य श्री के निर्देशानुसार लौटे॥ शिरगूरकर पाटील वहीं रुके रहे। भारत सरकार की उपर्युक्त कारगुजारी पर संतोष जाहिर करते हुए एक पत्र आचार्य श्री ने प्रधानमंत्री कार्यालय को इस विषय में संविधान में संशोधन करने के सुझाव को देते हए देने को कहा। आज्ञानुसार पंडित तनसुखलालजी काला ने म्हसरुल से ही पत्र व्यवहार किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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