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________________ प्रतिज्ञा - २ ५५७ २३.११.१६४६ को वे दिल्ली पहुँचे ॥ दिल्ली पहुँच कर सर्व प्रथम दोनों ही महानुभावों ने अपने - अपने कार्य बाँट लिये ॥ जहाँ पाटील जी राजनितिक सुप्रयत्नों में लग गये, वहीं पंडितजी सामाजिक चेतना को प्रस्फुट करने के प्रयासों में | अपने-अपने कार्य के अनुसार रहने का स्थान भी तय किया गया।। पंड़ितजी ने रहने के लिये महासभा का कार्यालय चुना, तो शिरगूरकरजी ने १०, सेन्ट्रल कोर्ट, नई दिल्ली ॥ अपने निवास की व्यवस्था एवं सामाजिक चेतना को प्रस्फुट करने के लिये पंडितजी ने श्री परसादीलालजी पाटणी ( महामंत्री - श्री भारतवर्षीय दिगंबर जैन धर्मसंरक्षिणी महासभा) से संपर्क किया। उन्होंने न सिर्फ पंडितजी के निवास की व्यवस्था करके दी, अपितु सप्तम प्रतिमाधारी पंडितजी के दैनिक भोजन की भी सुव्यवस्था की । वैसे कार्य संपन्न होने तक पंडितजी एक समय के भोजन व जल ग्रहण की प्रतिज्ञा आचार्य श्री से लेकर ही नांदगाँव से चले थे । पाटणीजी ने ही अन्यान्य समाज के वरिष्ठ महानुभावों से पंडितजी का परिचय करवाया । इनमें से अधिकांश या तो पंडितजी से पूर्व से परिचित थे, या फिर पंडितजी का नाम सुन रक्खा था ।। ये सभी एकमत से इस कार्य में अपना सर्वांग सहयोग देने कटिबद्ध हुए । इन्हीं महामनाओं के सहयोग से पंडितजी ने दैनिक सभाओं व व्यक्तिगत सम्पर्कों के जरिये जन-जागरण का भी कार्य प्रारंभ किया || सामाजिक स्तर पर एक माहौल की निर्मिति होने लगी। कुछ ही दिनों में आम आदमी तक सार्वाजनिक चर्चाओं में आचार्य श्री व आचार्य श्री के पक्ष को लेकर चर्चा करने लगा, जिसकी गूँज आम राजनैतिक कार्यकर्ताओं के माध्यम से सत्ता के गलियारों तक पहुँचने लगी ।। इसी बीच शिरगुरकरजी के व्यक्तिगत सुप्रयत्नों से सर्वप्रथम एक औपचारिक मुलाकात राष्ट्रपति राजेन्द्रप्रसाद जी से उनके निवास स्थान पर ५ दिसम्बर १९४६ को हुई || शिरगूरकरजी ने राष्ट्रपति महोदय से पंडितजी का परिचय करवाते हुए पंडितजी को विस्तृत चर्चा के लिये आगे किया। पंडितजी की शैली व विषय प्रस्तुतिकरण की विधा देख शिरगूरकर पाटील अचम्भित से रह गये व उनका आत्मविश्वास सुदृढ़ हो गया कि नहीं, अब कार्य हो जायेगा || पंडितजी द्वारा प्रेषित आचार्यश्री के आशीर्वाद को राष्ट्रपति महोदय ने शिरोधार्य किया व पश्चात् पंडितजी ने प्रश्नोत्तरात्मक व चर्चात्मक शैली में जैन धर्मावलम्बियों की वर्तमान स्थिति, आचार्यश्री का पक्ष व जैनधर्म की सनातनता पर संक्षेप में, किंतु सारगर्भित प्रमाण प्रस्तुत किये ॥ Jain Education International राष्ट्रपति महोदय प्रभावित हुए || विदा काल में उन्होंने आचार्य श्री को न सिर्फ अपना नमोस्तु कहने को कहा, अपितु For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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