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________________ ५५६ चारित्र चक्रवर्ती वे आचार्य श्री का पक्ष इन राजनितिज्ञों के सम्मुख नहीं रख पायेंगे। इस कार्य के लिये उन्हें आचार्य श्री के प्रतिनिधि के रूप में एक ऐसे सुयोग्य विद्वान की आवश्यकता है, जो कि न सिर्फ जैनागम का ज्ञाता हो, अपितु अद्भुत शब्द सामर्थ्य का धनी, अपने विषय को प्रस्तुत करने में कुशल व व्यवहार कौशल्य का पुंज हो॥ निर्भिक भी होना चाहिये उसे ।। इस पर आचार्य श्री ने पूछा कि ऐसा क्यों ? इस पर पाटील जी का उत्तर था कि उस प्रतिनिधि को किसी सामान्य मंत्रियों या सरकारी प्रतिनिधियों के ही नहीं, अपितु महामहिम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्रप्रसादजी, श्री श्री बाबासाहेब आंबेडकरजी, महामना मौलाना आजादजी व षट्दर्शन पारंगत महामना महाविद्वान एवं वाद कुशल प्रधानमंत्री पं. जवाहरलालजी नेहरू आदि के समक्ष भी अपना पक्ष रखना है। यहाँ शिरगूरकर जी प्रतिनिधि पात्र का बखान कर रहे थे कि वह कैसा होना चाहिये और वहाँ आचार्यश्री के मस्तिष्क में एक ही नाम रह-रह कर उभर रहा था और वह नाम था पं. तनसुखलाल जी काला॥ आचार्यश्री ने तुरंत पं. तनसुखलाल जी काला को उपस्थित होने का निर्देश दिया। आचार्यश्री जिस भूमि से विहार करते हुए रावलगाँव पहुंचे थे, वही नांदगांव की भूमि पंडित जी की क्रिडा व कर्मभूमि थी।। अकेले पंडितजी की ही नहीं, अपितु यह वह वह भूमि है जिससे जन्म, क्रिडा या कर्म, किसी न किसी अपेक्षा से प्रथम पट्टाचार्य वीरसागरजी, द्वितीय पट्टाचार्य शिवसागरजी, आचार्यकल्प चंद्रसागरजी, आचार्य श्रेयाँस सागरजी, मुनिवर्य अजेयसागरजी, मुनिवर्य अनमोल सागरजी, आर्यिका अर्हमति माताजी, आर्यिकारत्न श्रेयाँसमति माताजी, आर्यिका अनमोलमति माताजी आदि संबंधित रहे। यह वही गाँव है जहाँ पर न सिर्फ जैन जगत के सुप्रसिद्ध साप्ताहिक जैन दर्शन के सह संपादक पं. प्रवर तेजपालजी काला रहते थे, अपितु जगप्रसिद्ध क्रांतिकारी माणिकचंदजी पहाडे की भी कर्म भूमि रही है। किसी न किसी अपेक्षा से कह सकते हैं कि प्रज्ञा भूमि है यह॥ आचार्य श्री के आदेशानुसार पंडितजी आये|आचार्यश्री ने पंडितजी को आदेश दिया कि अपने सारे ही आजीविका व सामाजिक कार्यों को स्थगित कर तुरंत शिरगूरकर पाटील के साथ दिल्ली रवाना हो जायें। पंडितजी ने आज्ञा शिरोधार्य की॥ गमन के पूर्व की औपचारिकतायें पूर्ण कर आचार्य श्री का शुभाशीर्वाद ले शुभ मुहुर्त में दोनों ही दिग्गज महामना सहयोगी श्री जयचंदजी लौहाड़े(हैद्राबाद) को साथ ले दिल्ली रवाना हुए। समूचा नांदगांव उन्हें विदा देने उपस्थित था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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