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________________ प्रतिज्ञा-२ पं. सुमेरूचंद्र जी दिवाकर द्वारा राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्रप्रसादजी की ओर से २१ अगस्त १९५० को गव्हर्नमेन्ट ऑफ बोम्बे (महाराष्ट्र-सरकार)द्वारा हरिजनों अथवा स्वर्ण हिंदुओं के जैनायतनों में प्रवेश अधिकार को लेकर उत्पन्न किये गये संवैधानिक-विवाद को शिथिल करने के उद्देश्य से जैनियों के पक्ष में पहल करने हेतु लिखे गये पत्र के प्रत्युत्तर में यह उत्तर प्राप्त हुआ कि इस विषय में राष्ट्रपति की हैसियत से वे प्रत्यक्ष रूप में कुछ नहीं कर सकेंगे। इस सम्बन्ध में उन्हें (जैनधर्मावलम्बियों को) भारत सरकार से निवेदन करना चाहिए। ___संभवतः आचार्यश्री को राष्ट्रपति अथवा कहें कि भारत सरकार की ओर से आने वाले इस प्रत्युत्तर का पूर्वाभाष हो गया थाव तदनुसार भाव आया कि प्रांतीय स्तर पर उत्पन्न स्थिति कहीं केन्द्रिय न बन जाये, इसलिये प्रथम स्वतंत्र भारत का स्वतंत्र संविधान निर्मिति में तत्पर केन्द्र सरकार को ही अपने पक्ष में करने हेतु पहल की जाये। इस कार्य हेतु उनका मन समानान्तर कार्यकर्ताओं के एक और गठन का हो रहा था। नवम्बर १९४६ की बात है यह। इस समय आचार्यश्री रावलगाँव (नासिक, महा.) में विराजमान थे॥ अनन्य चिंतन के पश्चात् उन्हें दक्षिण महाराष्ट्र(सांगली-कोल्हापुर) के सुप्रसिद्ध राजनितिज्ञ व कांग्रेस के प्रथम श्रेणी के कार्यकर्ता व श्री बाबासाहेब आंबेडकर के विश्वस्त श्री शिरगूरकरजी पाटील की याद आई। शिरगूरकर पाटील महाराज के अनन्य भक्तों में से न सिर्फ एक थे, अपितु इस आपातकाल में अपनी विशिष्ट सेवायें देने का आश्वासन न सिर्फ कई बार दे चुके थे, अपितु उस अनुसार सहयोग भी दिया था। ____ आचार्यश्री ने उन्हें बुलवाने का निर्देश दिया। वे आये। संक्षेप में ही आचार्यश्री का मंतव्य अनुमान कर इस कुशल राजनितिज्ञ ने आचार्यश्री से निवेदन किया कि वे आचार्यश्री द्वारा नियुक्त डेप्यूटेशन को न सिर्फ अन्यान्य केन्द्रिय प्रतिनिधियों से मिलवा देंगे, अपितु तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल जी नेहरू से मुलाकात का सम्यक् आयोजन भी करवा देंगे, किंतु... किंतु शब्द का प्रयोग कर पाटीलजी ठहर गये।। आचार्य श्री ने पूछा कि किंतु क्या ? पाटीलजी ने कहा कि वे तो राजनितिज्ञ हैं, जैन विद्वान नहीं॥ जैन विद्वान के रूप में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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