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चारित्र चक्रवर्ती पक्ष में लेने का उद्यम, बम्बई सरकार के विरुद्ध किये जा रहे उद्यम के साथ-साथ किया जाय॥ इसी निर्णय के अनुसार आचार्य श्री के निर्देशन में केन्द्र सरकार को जैनियों के पक्ष में किये जाने की कथा का निरुपण इस प्रतिज्ञा-२ शीर्षक के तहत किया गया है।
आइये, आचार्य श्री के निर्देशन के तहत जैन-धर्मावलम्बियों पर आये इस उपसर्ग के निवारणार्थ केन्द्र सरकार को जैन-धर्मावलम्बियों के पक्ष में लेने के सफल प्रयास की कथा का हम भी पारायण करें।
सूचना:- यहाँ इस सत्य को हम स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि यह प्रकरणपं. सुमेरुचंद्रजी का लिखा हुआ नहीं है। इस प्रकरण को हमने परमपूज्य १०८ आचार्य वर्धमान सागरजी, स्वस्ति श्री भट्टारक चारुकीर्तिजी, महासभा अध्यक्ष आदरणीय निर्मलकुमारजी सेठी व सुप्रसिद्ध दानपति, जो कि इस प्रकाशन के भी दानपति हैं व जिनका बहुकाल आचार्य श्री केसान्निध्य में गुजरा है, ऐसे वयोवृद्ध महामनाश्री कांतिलालजीज़वेरीआदिकेपरामर्शानुसार भव्य जीवों को इतिहास के समीचीन बोधार्थ मूल ग्रंथ से सर्वथा पृथक इस परिशिष्ट अंतरे (कॉलम) में मुद्रित करवाया है। इस लेख का लेखन सन् १९५१ में सुप्रसिद्ध विद्वान श्री वर्द्धमान जी पार्श्वनाथ शास्त्री (विद्यावाचस्पति, न्यायकाव्यतीर्थ), शोलापुर(महा.) के सुप्रयासोंवसंपादन दायित्व में ऐतिहासिक दस्तावेज़ के रूप में प्रकाशित व स्वयं आचार्य श्री एवंपं.सुमेरुचंद्रजी दिवाकर द्वारा अवलोकित-प्रशंसित जैन बोधक(तत्कालीन सुप्रसिद्ध मासिकपत्र) के धर्मविजय ध्वजांक-अपर नाम- श्री आचार्य शांतिसागरविशेषांक से ग्रहण करव अकलुज(महा.) के प्रत्यक्षदर्शीमहानुभावों व उनके परिवारजनों द्वारा उपलब्ध करवाई गई सामग्रियों के आधार से सुप्रसिद्ध विद्वान पं. हेमन्तजी काला, मुंबई, वर्तमान निवास इंदौर द्वारा करवाया गया है।
इस लेख के लेखन का एक कारण और भी बना, और वह यह कि स्वयंपं. सुमेरुचंद्रजी दिवाकर ने अपने १९५३ के चारित्र चक्रवर्ती के प्रथम संस्करण में दिगम्बरत्व शीर्षक से पं. जवाहरलालजी द्वारा लिखे गये उपर्युक्त विषय से संबंधित एक बहुमूल्यवमहत्वपूर्णपत्र का पृष्ठ५३३ पर उल्लेख किया है, किंतु यह पत्र जैन समाज के किस विशिष्ट व्यक्तिको भेजा गया, क्योंभेजागयावउस विशिष्ट व्यक्ति ने वेकौनसे उपाय किये कि प्रधानमंत्री कार्यालय इस पत्र को प्रेषित करने को बाध्य हो गयाअथवाक्यावोपत्र व्यक्तिगत्थाया कि उसे जैन समाज को प्रेषित किया गया थायाकहीं यहभीतोस्वयं आचार्य श्री केही किसी मिशन का अंग नहीं था आदि इस पत्र से संबंधित वाचक के चित्त में सहज ही उठने वाले प्रश्नों का समाधान नहीं किया है। यहाँ से आगे की कथा में कहे जाने वाले दो नायकों में से एक के नाम यह पत्र आया था, जिसके कि नाम्मोल्लेख, उद्देश्य व कार्य के विवेचन सहित, हम उपर्युक्त पत्र की मूल प्रति की फोटो, अन्य सामग्रियों के साथ मुद्रित करने जा रहे हैं।
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