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चारित्र चक्रवर्ती जैन धर्म पर आई विपत्ति को दूर करने का आश्वासन भी दिया। ___ राष्ट्रपति महोदय से पंडितजी की मुलाकात करवाने में शिरगूरकर पाटीलजी को कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। उन कई समस्याओं में से एक समस्या यह थी कि पंडितजी को वे किस अधिकारिक व्यक्ती के रूप में आचार्यश्री व जैनधर्म का पक्ष लेकर सरकारी प्रतिनिधियों से मिलवायें ? सरकारी महकमों में वे सम्पूर्ण दिगंबर जैन समाज के प्रतिनिधि के रूप में पंडितजी का क्या कह कर परिचय करवायें ? यद्यपि आचार्यश्री की
ओर से अधिकृत अधिकार मौखिक रूप से तो प्राप्त हो गया था, किंतु लिखित रूप में प्राप्त नहीं हुआ था। सरकारी महकमों में लिखित अधिकृतता का ही महत्व है, मौखिक का नहीं। यह समस्या आदरणीय प्रधानमंत्रीजी से मुलाकात के प्रयासों में न आये, इसलिये शिरगूरकरजी ने पंडितजी के पक्ष में अधिकार-पत्र प्रेषित करने हेतु आचार्यश्री को टेलिग्राम प्रेषित किया। ____ आचार्यश्री ने निवेदन की गंभीरता व उपयोगिता पर गौर करते हुए तुरंत ही गोपाल दिगंबर जैन संस्कृत महाविद्यालय, मुरैना(म.प्र.) एवं बीसवीं सदी के द्वितीय दशक के श्री भारतवर्षीय दिगंबर जैन धर्मसंरक्षिणी महासभा के अध्यक्ष व सुप्रसिद्ध उद्योगपति शाह सखाराम रावजी दोशी (सोलापुर, महा.) के सुपुत्र, जो कि न सिर्फ सुप्रसिद्ध उद्योगपति (कार्यकारी संचालक : रावलगांव शुगर फेक्ट्री, मालेगांव (महा.)) थे, अपितु सामाजिक व राजनैतिक क्षेत्र में अपना विशिष्ट दखल रखते हुए, जैन समाज के प्रतिनिधि व्यक्तियों के रूप में भी अपनी पहचान रखते थे, श्री गोविन्द राव जी दोशी को बुलवाया व तत्संबंधी कार्यवाही करने के लिये कहा॥
गोविंदरावजी ने तत्काल पं.तनसुखलालजी काला को आचार्यश्री के आदेश से आचार्य श्री के प्रतिनिधि के रूप में भारत सरकार से चर्चा करने का अधिकार-पत्र टेलिग्राम के रूप में प्रेषित किया।
टेलिग्राम इस प्रकार था :MALEGAON 7 DEC. 1949 PANDIT TANSUKHLALJI CARE/ MAHAMANTRI DELHI. YOU ARE MY REPRESENTATIVE. TALK WITH CENTRAL
GOV T. OF INDIA ON MY BEHALF BY ORDER OF AACHARYA
SHANTISAGAR MAHARAJ.
-GOVINDJI. ... इस टेलिग्राम ने शिरगूरकर पाटील का कार्य आसान कर दिया।। यद्यपि पंडितजी श्री गोपाल दिगंबर जैन सिद्धांत संस्कृत महाविद्यालय, मुरैना(म.प्र.) के महामंत्री थे, किंतु
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