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श्रमणों के संस्मरण
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आत्मबली धर्मसागर महाराज का धैर्य
“ १६५७ में चातुर्मास के पश्चात् धर्मसागर महाराज कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा को (वीर संवत् २४८३ में) सिवनी से प्रस्थान कर मुक्तागिरि गए। वहाँ से कुंथलगिरि जाते समय देउळगावराजा नामक बस्ती के आगे जंगल में मध्याह्न के समय धर्मसागर महाराज सामायिक में बैठ गए। इमली के वृक्ष की छाया के नीचे ये मुनिराज ध्यान कर रहे थे ।
पता नहीं था कि इनके सिर से थोड़ी ऊँचाई पर वृक्ष की डाली पर दो सर्प इधरउधर फिरते हुए क्रीड़ा कर रहे हैं। एक ग्रामीण पथिक की दृष्टि इस दृश्य पर पड़ी। उसने साथ के श्रावकों से कहा कि महाराज के सिर के ऊपर की डाल पर सर्प युगल हैं। लोग चिंता में पड़ गए। कुछ काल व्यतीत होने पर महाराज की सामायिक पूर्ण हुई । " लोगों ने कहा- ' - "महाराज, आपकी कुटी के ऊपर समीप में दो सर्प फिर रहे हैं । यहाँ दूसरी जगह बैठ जाइये । महाराज ने लोगों का कहना नहीं सुना और वे दो घंटे वहाँ ही बैठे रहे । १६५७ की भादों सुदी चौथ को नांद्रे जाने के पूर्व धर्मसागर महाराज के पास जब मैं लासुर्ना ग्राम में गया और मैंने सर्प की उक्त चर्चा चलाई, तो वे बोले, "बात तो ठीक सुनी। ऐसा ही हुआ था । "
मैंने पूछा महाराज - "सिर पर यमराज नाचते रहे और वहाँ ही आप रहे आए। इसका क्या कारण है ?” महाराज ने कहा- "इसका क्या भय करना ? वे हमारे शरीर पर तो नहीं थे और यदि शरीर पर भी आ जाते, तो हमारी आत्मा का क्या करते ?” मैंने सोचा आखिर ये महामना भी तो शांतिसागर महाराज सदृश श्रेष्ठ तपस्वी के शिष्य हैं। संकल्प पूर्वक त्याग
महाराज ने कहा- "बुद्धिपूर्वक त्याग करने से फल मिलता है। मंदिर जाते हो, . वापिस घर आने तक सर्वप्रकार का आहार छोड़ दिया तथा कदाचित् मरण हो गया, तो त्याग में मरण होने से सद्गति मिलेगी। रात्रि भर आहार का त्याग हो और साँप के काटने से स्थिरतापूर्वक मरे, तो समाधि होगी ? अरे ! शरीर तो नाशवान है । इस पर मोहकर तुम इसका लालन-पालन कर रहे हो। यह तुम्हारे साथ जाने वाला नहीं है। इस नाशवान शरीर के पीछे क्यों लग रहे हो ?" गुणभद्र स्वामी ने कहा है- “इस शरीर में आसक्ति करने वाले का उद्धार नहीं होगा। त्याग बुद्धि रखो !"
तोते का त्याग
" एक मिथ्या साधु था । उसने एक बुद्धिमान तोता पाला था । तोते को पिंजरे में रखकर साधु ने राम-राम, विट्ठल विट्ठल सिखलाया था। वहाँ एक जैन ब्रह्मचारी आया । उस साधु ने सोचा कि यह ब्रह्मचारी विद्वान् है, इसलिए उसने कुछ उपदेश देने की प्रार्थना
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