SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 642
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५२० चारित्र चक्रवर्ती की।" ब्रह्मचारीजी ने कहा-“त्याग के द्वारा बंधन से छूट जाओगे।"तोते के कान में शब्द पहुंचे। उसने विचारकर एक घण्टे के लिए आहार-पानी छोड़ दिया। वह मुर्दे के समान हो गया। साधु ने तोते को मृत सदृश समझा, इस लिये पिंजरे का द्वार खोल उसे वृक्ष के नीचे छोड़ दिया। तोता चुपचाप पड़ा रहा। एक घण्टा पूरा होने पर वह तोता उड़ कर झाड़ पर चढ़ गया। वह बन्धन से छूट गया। एक घण्टे के त्याग के द्वारा पराधीनता दूर हो गई। उसने साधु से कहा, “तुम असली त्याग को पकड़ लोगे, तो तुम्हारा बंधन दूर हो जावेगा। बंधन से छूटकर सच्चा आनन्द पाने के लिए त्याग भाव को अपनाना चाहिए।" धर्मसागर महाराज की वाणी में माधुर्य था। वे आगम प्राण साधु थे। ******** - कोगनोली में सर्पराज का उपसर्ग "महाराज कोगनोली की गुफा में ध्यान करने बैठे थे। एक सर्प लगभग आठ हाथ लम्बा तथा बड़ा मोटा महाराज के पेट तथा अधोभाग में लिपटा हआ बैठा था। महाराज गंभीर मुद्रा में अवस्थित थे। सैकड़ों लोगों ने आकर देखा। घंटे भर बाद वह सर्प स्वयमेव चला गया। महाराज का ध्यान पूर्ण हुआ। ___ उन्होंने उपस्थित लोगों को यह प्रतिज्ञा दिलाई थी कि इस सर्प की बात को जाहिर नहीं करेंगे। लोगों ने अपने प्रतिज्ञा की इतनी मात्र पूर्ति की थी कि उन्होंने यह वर्णन नहीं छपवाया, किन्तु वे इसकी चर्चा को नहीं रोक सके। गुरु की ऐसी अपूर्व तपस्या को देख भला कौन अपना मुख बंद रख सकता था ?" कोगनोली में सर्प के भीषण उपद्रव की अवस्था में अविचलित तथा प्रसन्नतापूर्ण ध्यान-मुद्रा से महाराज की महिमा का प्रसार दक्षिण में बड़े वेग से हुआ। लोगों की भक्ति भी खूब वृद्धि को प्राप्त हुई। -पृष्ठ-५२७, मुनिराज श्री आदिसागरजी(शेडवाल) उवाच पुनः दीक्षा लेने का हेतु मैंने अनन्तकीर्ति महाराज से पूछा-“जब आपने दीक्षा ले ली थी, तब पुनः दीक्षा लेने का क्या कारण था ?" उन्होंने कहा-“दीक्षा गुरु पाहिजे-दीक्षा-गुरु होना आवश्यक है।" __-पृष्ठ-५३१, आचार्य अनंतकीर्तिजी उवाच | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy