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________________ ५१८ की गुफा है। महाराज का विशेष प्रभाव चारित्र चक्रवर्ती जब मैंने धर्मसागर महाराज से पूछा कि - " आपके अनुभव में महाराज के जीवन की कोई सातिशय प्रभाव को बताने वाली घटना आई होगी ?" तब वे कहने लगे- “संघ में एक स्त्री रहती थी । उसका चार वर्ष का बच्चा पानी में डूब गया। वह स्त्री बच्चे को खोजने लगी। लोगों ने खोजकर बच्चे का पता चलाया। उस बच्चे का बचना असम्भव था । महाराज के प्रभाव से बालक अच्छा हो गया। मैंने देखा कि महाराज के संघ के लोगों को कोई कष्ट नहीं होता था । " गाड़ी लौटने पर बच्चे का रक्षण उन्होंने एक दूसरी घटना इस प्रकार सुनाई - " हुम्मच पद्मावती क्षेत्र के समीप एक गाड़ी उलट पड़ी। एक वर्ष का बालक गिर पड़ा। उसके पास में कुल्हाड़ी पड़ी थी । वह बालक बाल-बाल बच गया। उस समय चंद्रसागरजी ऐलक थे । वीरसागरजी और मसागरजी निर्ग्रन्थ थे । " चन्द्रसागरजी का कथन उस यात्रा की एक घटना धर्मसागर महाराज ने इस प्रकार सुनाई, एक विधवा स्त्री को पान खाते देखकर चंद्रसागरजी ने कहा- “ विधवा का तांबूल भक्षण शीलव्रत के विरुद्ध है। आचार्य महाराज धन्य पुरुष हैं। इनके पास नियम लेकर तुम अपने को धन्य करो। " इसे सुनते ही उस स्त्री ने आजीवन तांबूल भक्षण का त्याग किया था। गोरल में मूर्च्छा धर्मसागर महाराज जब ऐलक थे, तब उनका नाम यशोधर महाराज था । उस वर्ष गोरल में महाराज के साथ उनका चातुर्मास व्यतीत हुआ था । उस समय की घटना का विवरण धर्मसागर महाराज ने इस प्रकार सुनाया था : गोरल में हमने शास्त्र पढ़ा। पश्चात् उठकर हम ग्रंथ की नकल करने लगे । श्लोक पूर्ण करने के शेष तीन अक्षर बचे थे कि हमें मूर्च्छा आ गई। गरदन लटक पड़ी। ऐसा लगा कि अब हमारे प्राण जाने की तैयारी कर रहे हैं। कुछ समय बाद वमन हो गया । वमन के बाद हमने मौन ले लिया था । पश्चात् आचार्य महाराज आए। उन्होंने देखा और कहा - "हमें नहीं मालूम था कि तुम्हारी ऐसी हालत हो गई।" उस प्रसंग पर महाराज ने कहा था- "तुम्हारा मरण लिखतेलिखते होगा और हमारा मरण चलते-चलते होगा ।" For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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