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________________ श्रमणों के संस्मरण ५१७ चारित्र पर उपदेश __ "वहाँ आचार्य महाराज कन्नड़ी भाषा में चारित्र पर उपदेश देते थे। शास्त्र स्वाध्याय खूब करते थे। शास्त्रानुसार उन्होंने अपने जीवन में बहुत परिवर्तन किया था।शुद्ध चरित्रधारी निर्ग्रन्थ साधु होने के कारण उनका प्रभाव वेग से वर्धमान हो रहा था।" महाराज के जीवन पर प्रकाश "उस समय नेमण्णा (मुनि नेमिसागर महाराज) गृहस्थ थे। वे शास्त्र पढ़ते थे और आचार्य महाराज उसे स्पष्ट रूप से समझाते थे। उस समय महाराज अष्टमी, चतुर्दशी को मौन व्रत धारण किया करते थे। उस मौन की अवस्था में उनकी जाँघ पर एक सर्प चढ़ा था। महाराज उस समय स्थिर थे।" धर्मसागर महाराज के विचार __ "हमारे मन में प्रारम्भ से ही ब्रह्मचारी रहने के भाव थे। इस कारण हम शांतिसागर महाराज के समीप बहुत बार जाया करते थे।" . “पहले महाराज ने मुझे शादी होने पर्यन्त ब्रह्मचर्य व्रत दिया था। पश्चात् सन् १९२८ में शिखरजी पहँचकर उन्होंने पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत जीवन भर को दिया। उन्होंने मुझे क्षुल्लक दीक्षा दी। दस वर्ष के पश्चात् मैं ऐलक बना। दो वर्ष ऐलक रहने के पश्चात् महाराज ने मुझे निग्रंथ दीक्षा दी। मेरी दीक्षा के सर्व संस्कार महाराज ने ही अपने हाथ से किए थे।" मधुर वाणी उन्होंने यह भी बताया-“दिल्ली में आचार्यश्री का चातुर्मास हुआ था। उस समय मुझे महाराज के समीप १८ वर्ष रहने का सौभाग्य मिला था। उनकी धर्म में प्रगाढ़ निष्ठा थी। धर्म विरुद्ध बात को वे सहन नहीं करते थे । वे शिष्यों को कठोर शब्द कभी भी नहीं कहते थे। मधुर वाणी से वे समझाया करते थे या मौन रहते थे।" श्रवणबेलगोला की यात्रा सन् १९२४ में आचार्य महाराज गोकाक से श्रवणबेलगोला गए थे। वे श्रवणबेलगोला में १५ दिन ठहरे थे। वहाँ के मठ के स्वामी भट्टारकजी के यहाँ आहार की विधि लगली थी, किन्तु आचार्य महाराज वहाँ आहार नहीं लेते थे । महाराज कहते थे-“मठ का अन्न ठीक नहीं है। वहाँ का धन प्रायश्चित्, दण्ड आदि द्वारा प्राप्त होता है। निर्माल्य धन नहीं लेना चाहिए।" पंडित (उपाध्याय) के यहाँ भी महाराज आहार को नहीं जाते थे। वेचन्द्रगिरि पर्वत पर एक प्राचीन मन्दिर में रहते थे। उसके पास ही भद्रबाहु श्रुतकेवली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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