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________________ ५०४ चारित्र चक्रवर्ती बहुत खुशी होगी। आपके खिलाफ कोई नजर नहीं उठा सकेगा। माफ कीजिए ! जो आपकी तरफ बुरी निगाह करेगा, उसकी खैरियत न समझिए।" महाराज ने बताया कि इस प्रकार के अनेक लोग उनके पास आते रहते हैं। अपने रत्न का मूल्य दूसरा करता है। दुर्भाग्य की बात है कि हम समीप में रत्नराशि होते हुए भी दरिद्री की तरह दुःख प्राप्त कर रहे हैं। यवन तो जैन साधु की भक्ति करता है और दुष्ट पंडित तथा अविवेकी जैन धनिक साधु-निन्दा करते नहीं थकते। नातेपुते की घटना उन्होंने कहा-“आचार्य शांतिसागर महाराज ने मुझे आज्ञा दी कि मैं भी एक माह अन्यत्र विहार करूँ। मैं बारामती से दहीगांव की तरफ गया था। नातेपुते के समीप पहुँचने पर कुछ विरोधी व्यक्तियों ने काले झण्डे दिखाये। लोक-व्यवहार में प्रवीण न होने के कारण मैं यह नहीं जान सका कि काले झण्डों का क्या मतलब है ? जैन मण्डली की तरफ से बाजे बज रहे थे। मैंने कहा, बाजे बन्द करो। बाजों से क्या प्रयोजन है ? मैं विरोध-प्रदर्शक झण्डे वालों के समुदाय में चला गया। वहाँ से मैं जैनमन्दिर में पहुँच गया। कलेक्टर ने आकर हमें बताया कि गाँव में गड़बड़ी होने की संभावना होने से उसका आगमन हुआ है। हमने कलेक्टर को गृहस्थ धर्म की आरम्भिक अवस्था से लेकर मुनियों के २८ मूलगुणों आदि का स्वरूप बताया और कहा कि हमें अपने शास्त्र की आज्ञानुसार आहार लेने नगर में जाना पड़ता है। शौच के लिए भी हमें नगर के मध्य होकर बाहर जाना पड़ता है।" __ "हमारी बातों को सुनकर कलेक्टर ने हमारे विहार का समय नियत कर दिया। हमने कलेक्टर से कहा कि आप सुबह ८ बजे से ११.३० बजे तक और शाम को ३ बजे से ५ बजे तक हमारे विहार का काल नियत करते हैं, किन्तु यदि शौच की बाधा असमय में आ जाय, तो आप बतावें क्या किया जायेगा? वे निरुत्तर हो गये। हम शासकीय आदेश की उपेक्षा करते हुए गाँव में से गये। वापसी में हमने देखा कि एक पुलिस की मोटर खड़ी है। फौजदार के साथ पाँच सिपाही हथकड़ी लेकर हमारे आने के मार्ग पर खड़े हैं। हम भूमि पर दृष्टि रखते हुए गाड़ी के पास आये और आगे चले गये। हमें किसी ने नहीं रोका। इस घटना के पश्चात् आचार्य महाराज ने मुझे अपने पास बुला लिया था।" देहली चातुर्मास की विशेष घटना नेमिसागर महाराज ने देहली चातुर्मास की एक बात पर इस प्रकार प्रकाश डाला था"देहली में संघ का चातुर्मास हो रहा था। उस समय नगर के प्रमुख जैन वकील ने संघ के नगर में घूमने की सरकारी आज्ञा प्राप्त की थी। उसमें नई दिल्ली, लालकिला, जामा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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