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श्रमणों के संस्मरण
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करते समय चित्त में विचार आया कि जब महातपसस्वी गुरु के रूप में आप यहाँ विराजमान हैं, तब जीवित तपोधर्म को क्यों न अर्घ चढ़ाऊँ ? इससे मैं आपके पास आया। आचार्य शांतिसागर महाराज के जीवन में मैं पर्यूषण में उनके पास पहुंचा करता था, इसका कारण यह था कि उनके भीतर जाज्वल्यमान दशधर्मों का प्रत्यक्षीकरण होने से सजीव धर्मों की पूजा का सौभाग्य मिलता था। आज आपके पास भी मुझे वही लाभ मिल रहा है । " उसके अनंतर मन में एक विकल्प आया। मैंने सोचा, महाराज से समाधान प्राप्त कर लूँ, अन्यथा पूजा करने में वह विचार विस्मृत न हो जाय ।
मैंने कहा- "क्या आप आचार्य शांतिसागर महाराज को आज भी प्रणाम करते हैं ? पहले तो करते थे, क्योंकि वे महाव्रती साधुराज थे, किंतु अब तो वे सुरराज हुए होंगे ?" संयमी पर्याय को प्रणाम
सागर महाराज ने कहा- "हम सदा आचार्य महाराज को प्रणाम करते हैं। उनके चरणयुगल हमारे हृदय में विराजमान हैं।” महाराज नेमिसागरजी ने यह मार्मिक बात कही थी कि“हम शांतिसागर महाराज की संयमयुक्त पर्याय को ध्यान में रखकर प्रणाम करते हैं। उनकी संयमरहित देव पदवी हमारी दृष्टि में नहीं रहती। हम अव्रती देव पर्यायवाली आत्मा को कैसे प्रणाम करेंगे ? आगम की जैसी आज्ञा है, वैसा हम करते हैं । " देव पर्याय को नमस्कार नहीं
मैने पूछा- "महाराज ! यदि आचार्य महाराज का जीव यहाँ साक्षात देवरूप में दर्शन दे, तो क्या उनको भी नमस्कार न करेंगे ?" नेमिसागर महाराज ने कहा- “हाँ ! हम उन्हें नमस्कार नहीं करेंगे। "
इस पर मैने पूछा- “अच्छा यह बताइये कि क्या वह सुरराज की पर्यायधारी आचार्य महाराज की आत्मा आपको प्रणाम करेगी या नहीं ?" उन्होंने कहा- " अवश्य ! आगम की आज्ञा में आचार्य महाराज का सदा विश्वास रहा है, इस कारण वे आगम की आज्ञानुसार सकल संयमी की वंदना करेंगे, अन्यथा उनकी विशुद्ध श्रद्धा को दोष लगेगा । " मुसलमान वर्ग का प्रेम
महाराज के सुन्दर तर्कशुद्ध समाधान से मन को बड़ी शांति मिली। पूजा के पश्चात् मैं महाराज के पास आया तथा देखा कि एक मुसलमान तरुण उनसे प्रार्थना कर रहा था-"महाराज ! आप कुड़ची ग्राम के हैं। वहाँ की आम जनता आपके दर्शन करना चाहती है । " महाराज ने कहा- "तुम लोग मुसलमान हो और हम हैं दिगम्बर साधु । हमारे दर्शन से तुम्हारे यहाँ के मुसलमानों का मन दुःखी होगा। उनको क्षोभ प्राप्त होगा।" वह मुसलमान भक्त बोला- “ आप हमारे भी साधु हैं। आपके दर्शन से हम सबको
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