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________________ श्रमणों के संस्मरण ५.०१ "सेठजी ! अंग्रेज लोग तीस वर्ष की नौकरी के बाद पेंशन दिया करते थे, अब तुम सत्तर वर्ष के हो गए। घर-गृहस्थी की जिम्मेदारी से कब पेंशन लोगे ?” महाराज का प्रश्न बड़ा मार्मिक है। आज के राजनीतिज्ञ अपना एक पैर यममंदिर में रखते हुए भी राजनीति के प्रपंच में फंसे रहते हैं। गृहस्थ यह बात भूल गया है कि गृहस्थाश्रम के पश्चात् वानप्रस्थ तथा संन्यास आश्रम भी है। उनकी विस्मृति का ही परिणाम है कि जीव शहद में गिरी हुई मक्खी के समान छटपटा कर मरण करता है और असमाधि पूर्ण मृत्यु के कारण नरभव यूँ ही गँवा देता है। महत्वपूर्ण विचार एक दिन मिसागर महाराज ने बड़े महत्व के विचार प्रगट किए थे। उन्होंने कहा था"अनुभव, शास्त्र (आगम) तथा व्यवहार, इन तीनों को ध्यान में रखकर कार्य करना चाहिए।" उनकी यह शिक्षा भी बहुत उपयोगी है- “पूर्व में उपार्जित पुण्य कर्मोदय से सुखी, समृद्ध तथा वैभववानों को देखकर लोगों को नहीं जलना चाहिए। उससे गुण लेना चाहिए कि इस पूर्व में पुण्य द्वारा ऐसी सुन्दर सामग्री प्राप्त की है। हमें भी ऐसा पुण्य संचय करना चाहिए। जलते रहने से या निन्दा करने से हित नहीं होता। बिना पुण्य के कोई धनवान तथा सुखी नहीं बनता । जो कहते हैं कि गरीबों का शोषण कर, उनका धन लूटकर, धनवान समृद्ध बने हैं, वे यह बतावें कि धनवान बनने से उनको किसने रोका है ? पुण्यवान व्यक्ति धन तथा वैभव अवस्था को त्यागकर अल्प प्रयत्न से विभूतिवान बनते हैं । " विनय द्वारा विकास महाराज की यह शिक्षा सर्वसाधारण के लिए उपयोगी है- “बड़प्पन अपने-आप नहीं आता । छोटो की सेवा द्वारा बड़प्पन मिलता है। विनयवान सुखी रहता है। नम्र चींटी तिजोड़ी भीतर रखे हुए मिष्ट पदार्थ को खाती है। हाथी को बड़ा होने पर भी गन्ना खाने को नहीं मिलता है। यदि हाथी गन्ने के खेत में जाता है, तो उसकी पीठ पर लट्ठ प्रहार होता है। विनयवान, चींटी के समान सदा नम्र, उद्योग द्वारा मोक्ष को प्राप्त करता है । " आचार्य महाराज एक उदाहरण देते थे- “यदि एक ऊँचे खंभे के शिखर पर सुई लगाकर उसके ऊपर एक अमरूद का फल रख दिया जाय, तो भी छोटी-सी चींटी उस खम्भे का चक्कर लगाती हुई ऊपर पहुँचती है, धीरे-धीरे वह उस फल को खाकर पोला करती है, इससे वह फल जमीन पर गिर जाता है, इसी प्रकार उद्योगी विनयवान मोक्ष प्राप्त करता है। शूरवान साहसी व्यक्ति अल्पकाल में मुक्त होता है। अंजनचोर ने साहस करके अपना जीवन सुधारा और वह पवित्र बन मोक्ष गया ।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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