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________________ ४८६ श्रमणों के संस्मरण एकान्त नहीं है, मैं अनेकान्त दृष्टि से सोचता हूँ।" पिच्छी की लाज रखो आचार्य वीरसागरजी ने पिच्छी धारण करने वाले उच्च त्यागियों को दृष्टिपथ में रखते हुए कहा-“साधु को अपने पद का हमेशा ध्यान रखना चाहिये।" पिच्छी हाथ में लेकर उन्होंने मुझसे पूछा- “हमारे हाथ में क्या है ?"फिर बोले-“इस पिच्छी को हाथ में लेकर जिसने करुणा नहीं की, उसने क्या किया।" वे बोले- “हमारा तो यह कहना है, पिच्छी को लजाओ मत।" बनिया वे कहने लगे-“अपने हानि-लाभ का विचार करने वाला बनिया सबसे चतुर होता है। मुमुक्षु को अपने आत्म-हित के बारे में इसी प्रकार सोचना चाहिये।" उन्होंने कहा - "बनियों से स्याना अजब दिवाना।' पश्चात् बोले-“बनिया प्रारम्भ से चतुर रहता है और जाट पीछे समझदारी पाता है।" उनके शब्द थे-“बनियो मूल में स्यानों, जाट आखीर में स्थानों।" घर में प्रतिमा विराजमान करो ___ मैंने कहा था-"महाराज हमारे पिताजी बहुत वृद्ध हो गये हैं, शरीर शिथिल हो गया है, घुटनों में दर्द रहने के कारण जिन मन्दिर जा नहीं सकते, क्या उनकी धर्मसाधना के हेतु घर में जिन भगवान की मूर्ति ला सकते हैं ?" ___ उत्तर में उन्होंने कहा-“अवश्य मूर्ति विराजमान करो। बाद में उन्होंने एक मराठी की कहावत सुनाई-"ज्याच घरी नाहीं जिना चे दर्शन। जनावे श्मशान घर त्याचे (जिनके घर में जिन भगवान् की मूर्ति नहीं, वह घर तो श्मशान तुल्य है।)"इस प्रकार अनेक ज्ञानी मुनियों ने कहा था। धर्म से अनभिज्ञ गृहस्थ इस आगमोक्त कार्य की निन्दा कर पाप का बंध करता है।" अनादि मूलमन्त्र प्रश्न-“कुछ लोग कहते हैं, यह णमोकार मंत्र तो पुष्पदन्त आचार्य ने बनाया, क्या यह ठीक है ?" उत्तर-“यह अनादि मूलमंत्र है। साधुओं के प्रतिक्रमण आदि में णमोकार मंत्र का निरन्तर उपयोग होता है। सामायिक प्रकीर्णकका मङ्गलाचरण यहणमोकार मंत्र है। सामायिक दंडक के प्रारम्भ में भी यह मंत्र है। और भी कारणों से इसे अनादि मूलमंत्र मानना चाहिये।" सम्यक्त्व खेल नहीं है प्रश्न-"महाराज! आज सम्यक्त्व का बाजार बड़ा गरम है। उसका हर जगह नाम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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