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श्रमणों के संस्मरण उद्दिष्टत्याग का परिपालन
आचार्य महाराज क्षुल्लक अवस्था में स्तवनिधि के पास के सोलापुर नाम के ग्राम में पहुंचे। वहाँ एक ही श्रावक का घर था। वहाँ रात्रि को निवास कर आहार बिना किए वे विहार कर गये, कारण कि उद्दिष्टत्याग रूप नियम की रक्षा नहीं हो सकती थी। चेतावनी
इससे स्पष्ट हो जाता है कि क्षुल्लक या अन्य ऊँची पदवी वाला व्यक्ति यदि एक ही जगह प्रतिदिन आहार लेता है और वहाँ दूसरा चौका नहीं है, तो वह अपनी आहार-चर्या को निर्दोष नहीं पालन करता है। सदा एकत्र निवास होने पर वीतराग वृत्ति के ऊपर राग भाव उत्पन्न हुए बिना नहीं रहता है। पक्षियों का प्रेम
मैंने देखा- वर्धमान महाराज के पास आकर अनेक पक्षी चुपचाप बैठ जाते थे। चिड़िया भी उनसे नहीं डरती थी। मैंने देखा कि कभी-कभी चिड़िया उनके सिर पर, कंधे पर बैठ जाती थी। मैंने इसका कारण पूछा।
महाराज ने कहा- “पक्षी आते हैं, तुम उसे भगा देते हो, वे बेचारे डरकर भाग जाते हैं। हम उनको नहीं भगाते हैं। किसी को कष्ट क्यों दें ? इससे वे बेचारे हमारे पास आते हैं, बैठते हैं, उनको डर नहीं लगता है।" उत्तर की यात्रा
उन्होंने बताया था कि सन् १९२७ में गृहस्थावस्था में वे अपने अनुज कुंमगोंडा पाटील के साथ शिखरजी की यात्रा को गए थे। सोनागिरि भी गए थे। अजमेर की नशियाजी के दर्शन भी किये थे। नागपुर के पास भगवान् शांतिनाथ की प्रतिमा युक्त अतिशय क्षेत्र रामटेक भी गए थे। वास्तव में रामटेक क्षेत्र के दर्शन अत्यधिक आनन्दवर्धक रहे। प्राणायाम _ वर्धमान महाराज क्षुल्लक की अवस्था में मोटर द्वारा ऐलक दीक्षा लेने कोल्हापुर के श्रावकों के साथ गजपंथा आचार्य महाराज के पास गए थे। मोटर कितने वेग से चलती थी, इसका उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया था कि मील का खम्भा देखकर कभी-कभी हम श्वास रोकते थे, तो दूसरे मील का खम्भा आने पर हम श्वास छोड़ते थे।
इस विषय में लिखने का हमारा उद्देश्य इतना ही है कि पाठक देखें कि साधु बनने वाले सत्पुरुषों के कार्य ऐसे अद्भुत हुआ करते हैं कि उनके बारे में अन्य साधारण व्यक्ति कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।
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