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________________ श्रमणों के संस्मरण ४७७ जनित विविध प्रकार की आकुलताएँ अनायास दूर हो जाएँ और तब वह मनुष्य अपने जीवन का स्वकल्याणार्थ उपयोग कर सकता है, अन्यथा वह परिवार की सेवा - चाकरी में दिनरात व्यतीत कर कोल्हू के बैल के समान अमूल्य जीवन को समाप्त करता है। वर्धमान महाराज की धर्मपत्नी लगभग १५ वर्ष पर्यन्त जीवित रही थी । उनसे पुत्र बालगोंडा हुए थे, जो अभी जीवित हैं । वे अत्यन्त भद्र परिणामी हैं। वर्धमान महाराज ने बताया था कि उन्होंने मुनि आदिसागरजी बोरगाँवकर से ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण किया था। वर्धमान महाराज खेती का काम देखा करते थे। नौकर-चाकर तथा गरीबजन इनसे बड़े प्रसन्न रहते थे, कारण कि ये उनको खाने-पीने को मुक्तहस्त होकर अनाज दिया करते थे। हरिजन आदि गरीबों पर आचार्य महाराज की विशेष दयादृष्टि रहती थी। वे कठोर वाणी नहीं बोलते थे। उनका आहार -पान सामान्य था । उनकी दृष्टि घर में आचार्य शांतिसागर महाराज को अच्छा भोजन कराने की ओर विशेष रहती थी । वे सत्यता और सरलता की तो प्रारम्भ से ही मूर्ति रहे थे । सत्यप्रिय जीवन "उन्होंने (वर्धमान महाराज ने बताया था कि उनके पिता जी मिथ्या नहीं बोलते थे और वे भी असत्य भाषण नहीं करते थे ।" सत्य भाषण के कारण उनको लगभग लाख रुपए की सम्पत्ति से हाथ धोना पड़ा था। a ने कहा था- "महाराज, एक शब्द थोड़ा सा बदलकर बोल देना, बाकी सब मैं सम्हाल लूँगा । " कोर्ट में आने पर जब न्यायाधीश ने सत्य बोलने की शपथ दिलाई, तो वकील साहब द्वारा पढ़ाया गया सब पाठ विस्मरण हो गया और उन्होंने ठीक-ठीक बात कह दी। वकील ने महाराज से पूछा कि "गवाही देते समय क्या आप भूल गए थे ? " महाराज ने उत्तर दिया था कि नहीं, मैं भूला नहीं था। मैंने ठीक-ठीक ही उत्तर दिया है।" वास्तव में वे माता सत्यवती के आदर्श आत्मज थे। महाराज की इस सत्यता की अभी भी पुराने लोग उस प्रान्त में चर्चा करते हैं। आज के दम्भप्रधान युग में थोड़े-से रुपयों के लिए बड़े-बड़े लोग झूठ बोल देते हैं। सचमुच में वर्धमान महाराज सदृश्य महापुरुष बिरले ही होते हैं। उनकी सदा यही धारणा रही थी कि 'पुण्यानुसारिणी लक्ष्मी' (पुण्य के अनुसार लक्ष्मी का लाभ होता है ) " । भाग्य का चक्र विचित्र रहता है। इस विषय में महाराज ने कोल्हपुर के राजा शाहू महाराजा का एक बड़ा रोचक तथा मार्मिक कथन सुनाया : कोल्हापुर नरेश का संस्मरण एक बार कोल्हापुर नरेश के राजा शाहू महाराज से उनके राजपंडित ने निवेदन किया For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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