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________________ ४७६ शरीर नौकर है " उनकी दृष्टि थी कि यह शरीर नौकर है। नौकर को भोजन दो और काम लो । आत्मा को अमृत पान कराओ।" - चारित्र चक्रवर्ती भादों सुदी त्रयोदशी को महाराज ने समयसार के प्रवचनकाल में कहा था-' -" द्रव्यानुयोग के अभ्यास के लिए प्रथमानुयोग सहायक होता है। उसके अभ्यास से द्रव्यानुयोग कठिन नहीं पड़ता । " वास्तव में प्रथमानुयोग से आध्यात्म रस का पान करने वाली महनीय समर्थ तथा त्यागी विभूतियों का जीवनवृत्त ज्ञात होता है, जैसे पांडवपुराण से आत्मनिमग्न युधिष्ठिर आदि की दृढ़ता अवगत होती है । भोजनलोलुपी की कथा 1 महाराज ने प्रसंगवश कहा था- ' "ज्ञानी पुरुष अमोदर्य तप करता है। भूख से कम आहार लेता है | अज्ञानी पुरुष पेट फटने पर्यंत भोजन करता है, इससे वह दु:खी होता है । " महाराज ने ८० वर्ष पूर्व की एक घटना बताई थी कि कोन्नूर में बाबा भट्ट नाम के एक भोजनलोलुपी ब्राह्मण थे। उन्होंने लोटा भर घी, खूब शक्कर मिलाकर खाया । भोजन की तीव्र गृद्धतावश उसने खूब घी भी पिया । पश्चात् वहाँ से चलकर भोज आये । आते समय वेदगंगा-दूधगंगा नदी के संगम में से घुसकर भोज आना पड़ा। शीतल जल पेट में लगने के कारण खाया गया सब घी जम गया। उससे वह ब्राह्मण उदर शूल से बड़ा दुःखी हो छटपटाने लगा । ऐसा दिखने लगा कि अब वह नहीं बचेगा । भोज में एक चतुर वैद्य था । वह बुलाया गया । बाबाभट्ट से शरीर व्यथा का कारण ज्ञात कर वैद्यराज ने एक खाट पर बाबा भट्ट को लिटवाया और नीचे अग्नि रखकर पेट का खूब सिकाव करवाया । उष्णता से पेट में जमा घी पतला हो गया और उसके बाद विरेचन हुआ। इस प्रकार के प्राण बचे, नहीं तो उस ब्राह्मण की आशा नहीं रही थी । उसने भोजन खाया था, किन्तु अतिरेक होने से भोजन ही उसे खा रहा था, इसलिए भोजन में गृद्धता को छोड़कर भूख से कम खाना चाहिये। भूख से कम खाना कष्टप्रद नहीं होता है । मर्यादित जीवन आगे बढ़ना गृहस्थ कल्याण हेतु महाराज ने कहा- "यदि हम बाल से वृद्ध पर्यन्त सबको ही ब्रह्मचर्यका उपदेश देंगे, तो कार्य कैसे बनेगा ? सीढ़ी पर पैर रखते हु चाहिए, गृहस्थ को विषय सेवन में बहुत मर्यादा रखनी चाहिये। अधिक विषय-भोग से शरीर का रक्त नष्ट होता है और आदमी रोगी होकर शीघ्र मरण को प्राप्त करता है । " वर्धमान महाराज ने बताया था कि ३६ वर्ष की अवस्था में उन्होंने ब्रह्मचर्य व्रत ले लिया था। यदि वर्धमान महाराज का आदर्श आज का गृहस्थ स्मरण रखे, तो उसकी संततिवृद्धि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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