SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 595
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रमणों के संस्मरण ४७५ शांत था। रोता नहीं था। मैंने उसे रोते कभी नहीं देखा, न बचपन में और न बड़े होने पर। उसे कपड़े बहुत अच्छे पहिनाए जाते थे। सब लोग उसे अपने यहाँ ले जाया करते थे। हमारा घर बड़ा सम्पन्न था।" __ “एक बार कुंमगोंडा पानी में बह गया था, तब सब काम छोड़ महाराज ने पानी में घुस कर उसे बचाया था। कुमगोंडा की रक्षार्थ चौथी कक्षा के बाद इन्होंने पढ़ाई बन्द कर दी थी।" “इनकी शादी की बात आती थी, तब कहते थे कि मी लग्न करणार नाही (मैं विवाह नहीं करूँगा), कारण कि शास्त्रों में लिखा है, संसार खोटा है।' यह बात सुन हमारे माँ बाप के आँसू आ गये। वे बड़े धर्मात्मा थे, इसलिए मन ही मन बहुत प्रसन्न हुए।" “शरीर-बल में कोल्हापुर जिले में उनकी जोड़ का कोई नहीं था। चावल का पूरा बोरा उठाकर अपने कन्धे पर रख लिया करता था। इस पर जब उनको चाँदी के कड़े इनाम देने लगे, तो इन्होंने लेने से इन्कार कर दिया था।" जन्म कुंडली "उनकी जन्म-पत्री से ही मालूम हो गया था कि वे मुनि हो जाएंगे। सूर्य निकलते समय उनका जन्म हुआ था। उपाध्याय ने जन्मकुण्डली बनाई और कहा था कि यह महान् आत्मा है। जगत् में प्रकाश देगा। इससे माता-पिता हर्षित हुए थे।" शक्ति की परीक्षा ___ “एक बढ़ई ने भोज में आकर शक्ति-परीक्षण हेतु एक लम्बा झूटा गाड़ा था। वह गाँव में किसी से न उखड़ा, उसे नागपंचमी के दिन महाराज ने जरा ही देर में उखाड़ दिया था और चुपचाप घर आ गये थे। जब छूटा उन्होंने उखाड़ा तब मैंने कहा था- “ऐसा काम नहीं करना । चोट आ गई तो ? "इससे जनता द्वारा सम्मानार्थ निकाले गये जलूस में वे नहीं गए थे, कारण कि उन्हें कीर्ति नहीं चाहिए थी। वे जन्मजात विरक्त महापुरुष थे। उनका मेरे प्रति प्रेम था। कुमगोंडा पर भी प्रेम था।" दीक्षा का पत्र __ “जब उन्होंने दीक्षा ली थी, तब उत्तूर से पत्र आया था, घर भर के लोग रोने लगे थे। हमारे नेत्रों में भी आँसू आ गये थे, बाद में हम उनके पास गये थे।" सर्पराज का शरीर पर से जाना "तरुण वय में वे खेत में लेटे थे, उस समय एक बड़ा सर्प उनके गाल को स्पर्श करता हुआ पास के बिल में जा घुसा था और बार-बार निकलकर इनको देखता था। ये स्थिर थे। यह बात महाराज ने हमसे कही थी। मैं उन्हें सातगोंडा कहता था और वे मुझे अण्णा कहते थे।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy