SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 598
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४७८ चारित्र चक्रवर्ती "श्रीमन्त सरकार ! आप अन्य लोगों को हजारों रुपये दान में दिया करते हैं। मुझ गरीब ब्राम्हण पर भी ऐसी कृपा क्यों नहीं करते?" शाहू महाराज बड़े अनुभवी और विचारशील शासक थे। उन्होंने कहा-“क्या करूँ, आपको अधिक द्रव्य देने का भाव ही नहीं होता।" पण्डित की समझ में शाहू सरकार का कथन नहीं आया। अतः पडित के भाग्य की परीक्षा हेतु राजाज्ञा से दो ढेर भूसे के लगवाए गए। एक में केवल भूसा था, दूसरे में सुवर्ण रखा था। ऊपर से देखने में दोनों ढेर समान ही दृष्टिगोचर होते थे। शाहू महाराज ने ब्राह्मण से कहा-"जो ढेर तुम्हें पसन्द आये उसे उठा लो।" पण्डित महोदय ने भूसे वाला ढेर उठाया, सुवर्णवाला ढेर उठाने के उसके परिणाम नहीं हुए। तब शाहू महाराज ने कहा- "हम क्या करें, आपका दैव ही ठीक नहीं है।" शिथिलाचार तथा अज्ञान का युग वर्धमान महाराज ने बताया था कि जब आचार्य महाराज ने मुनि देवेन्द्रकीर्ति स्वामी से क्षुल्लक दीक्षा ली थी, उस समय देवेन्द्रकीर्ति स्वामी एक बार पंचमुष्ठी बनाकर कुछ केशों का लोंच करते थे, पश्चात् कैंची से शेष केशों को बनवाते थे। सचमुच में वह अद्भुत अज्ञान का युग था। उस समय उत्तर भारत के लोग तो मुनि पद के अस्तित्व की भी कल्पना नहीं करते थे और दक्षिण में जो निर्ग्रन्थ गुरु थे, उनकी क्रियायें अनेक बातों में विचित्र थी। मुनि जीवन से शिथिलाचार को दूर कर आगमानुसार प्रवृत्ति को पुनः प्रचलित करने का श्रेष्ठ कार्य आचार्य शांतिसागर महाराज ने किया था। यरनाल में मुनिदीक्षा आचार्य महाराज ने भौसेकर आदिसागर महाराज से यरनाल ग्राम में मुनि दीक्षा ली थी। शांतिसागर महाराज के निर्ग्रन्थ दीक्षादाता गुरु भोसे ग्रामवासी आदिसागरजी की दीक्षा की अद्भुत कथा सुनने को मिली। वर्धमान महाराज ने बताया था कि आदिसागरजी ने मुनिपद ग्रहण कर लिया। पश्चात् उन्होंने कहीं यह सुना कि पंचमकाल में 6 कोटि मुनीश्वर मरण करके नरक जाते हैं। इस बात को ज्ञात कर उनके मन में अद्भुत परिवर्तन हुआ। वे सोचने लगे कि यदि शास्त्र यह कहता है कि मुनि पदवी धारण करे नरक जाना पड़ेगा, तो मुनि पद त्याग करना ही अच्छा है। उस ग्रामवासी भोली आत्मा को सत्पथ बताने वाला कोई न मिला। अपनी विचित्र धुन में मग्न हो उन्होंने घर पर आकर मुनिपद का त्याग करके कंबल ओढ़ लिया और स्त्री से कहा-“भाकरी आण - खाने के लिए ज्वार की रोटी दे।" . बेचारी स्त्री घबड़ा गई। पतिदेव मुनि बने थे। उस पद में तो माँगकर भोजन नहीं होता, ये कैसे माँगकर खाने को तैयार हो गये। उस बाई ने गाँव के पंचों को सूचना दी। सब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy