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________________ ४७३ श्रमणों के संस्मरण एक बार उन्होंने जिनागम के मर्म रूप निम्न उक्तियाँ कही थी :सिद्ध भगवान् लोक के शिखर पर बैठ कर संसार का नाटक देखते हैं और सरागी भगवान् स्वयं नाटक करते हैं। जैन आगम छोटा सा जलाशय नहीं है, वह तो सिन्धु से भी बड़ा है। सम्यक्त्वी जीव अव्रती होते हुए भी अन्य व्रती को देख ऐसे हर्षित होता है, जैसे माता रुक्मिणी चिरवियोग के पश्चात् पुत्र प्रद्युम्न की भेंट होने पर आनन्दित हुई थी। अविवेकी, अंहकारी, साधु दर्शन होने पर संतप्त तथा क्रुद्ध बनता है। दर्शनमोह के कारण जीव की दृष्टि विपरीत हो जाती है। वर्धमान महाराज जब किसी कथा को कहते थे, तो उसमें स्वाभाविकता तथा चरित्रचित्रण का अपूर्व माधुर्य पाया जाता था। आचार्यश्री से अन्तिम वार्तालाप भादों सुदी दशमी को आचार्य महाराज के विषय में मैंने एक प्रश्न पूछा- “समाधि लेने के पूर्व आचार्य महाराज शेडवाल, सांगली आदि स्थानो में गए थे। नादें में वे श्री बालगोंडा के अत्यन्त विशाल, भव्य तथा फलों से लदे हुए रम्य बगीचे में २१ दिन ठहरे थे। उसके पश्चात् वे आगे विहार कर गए। उस समय आपकी और उनकी अन्तिम भेंट हुई थी। प्रार्थना है कि उस समय हुई बातचीत का कुछ दिग्दर्शन करें ?" वर्धमान महाराज ने कहा- “हमने महाराज से पूछा था कि क्या फिर इधर आयेंगे, हमारी-आपकी अब कब भेंट होगी?" स्वर्ग में भेंट होगी आचार्य महाराज ने उत्तर दिया था-"अब हमारी-तुम्हारी भेंट यहाँ नहीं होगी। अब स्वर्ग में ही अपनी भेंट होगी।" । इस चर्चा के उपरान्त वर्धमान स्वामी की मुद्रा बहुत गम्भीर हो गई। इससे मैंने पुनः अन्य प्रश्न नहीं किये। ऐसा प्रतीत होता था मानो वर्धमान महाराज के समक्ष अपने दिवंगत गुरुदेव का चित्र आ गया हो। तात्त्विक दृष्टि तात्त्विक चर्चा में महाराज ने कहा-“दान-पूजा आदि षट्कर्मों के द्वारा मोक्ष नहीं मिलता, स्वर्ग का सुख प्राप्त होता हैं। पाप, चोरी, लबारी, कुशील सेवनादि से पाप होता है, उनका फल नरकगति या तिर्यंचगति के दुःख है। एक दृष्टि से पुण्य अमृतकुम्भ है और पाप विषकुम्भ है। दूसरी दृष्टि पुण्य-पाप दोनों को विषकुम्भ मानती है। वह शुद्ध दृष्टिमात्रे अमृतकुम्भ है।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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