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________________ ४६६ चारित्र चक्रवर्ती वैभव के साथ उनका जुलूस निकाला गया। उन्होंने स्वच्छ नवीन वस्त्र धारण किए थे। गाजे-बाजे के साथ जुलूस दीक्षा-मण्डप में आया, जहाँ इनको क्षुल्लक दीक्षा दी गई तथा उनका नाम शांतिसागर रखा गया (इस दीक्षा का पूर्ण वर्णन दिगंबर-दीक्षा प्रकरण में है)। ज्येष्ठ सुदी त्रयोदशी को दीक्षा अब महाराज तो क्षुल्लक हो गए। उन्होंने घर पर कोई समाचार तक नहीं भेजा। भेजते क्यों? जब घर का द्रव्य तथा भाव, दोनों ही रूप से त्याग कर दिया था, तब वहाँ खबर भेजने का क्या प्रयोजन ? किन्तु उत्तूर का समाचार भोज आ ही गया। चिट्ठी में लिखा था कि महाराज ने क्षुल्लक दीक्षा ले ली है। उनकी दीक्षा ज्येष्ठ सुदी तेरस को हुई थी। दीक्षा समाचार वर्धमान स्वामी ने बताया कि हमें समाचार ज्येष्ठ सुदी चौदह को प्राप्त हुआ। पत्र पहले पोस्टमैन ने भाई कुंमगोंडा के हाथ में दिया। उसे पढ़कर कुंमगोंडा बहुत रोए। वे अकेले थे। सबेरे उनका उतरा हुआ चेहरा देखकर अक्का (बहिन) ने पूछा, “तुम्हारा मुख उदास क्यों है ?" कुंमगोंडा ने कहा-“अप्पानी दीक्षा घेतली'', अर्थात् महाराज ने दीक्षा ले ली। जिसको यह समाचार मिले, उसके मोही मन को अपार सन्ताप पहुंचा। हम कुंमगोंडा और उपाध्याय के पुत्र को साथ लेकर उत्तूर गये। रात को सदलगाग्राम में मुकाम किया। वहाँ के मराठों ने कहा, “भोज का पाटील स्वामी (साधु) हुआ है।" दक्षिण में दीक्षा लेने वाले को स्वामी कहते हैं। यथार्थ में साधु बनने पर यह व्यक्ति इन्द्रियों का दास नहीं रहता है, स्वामी बनता है, अतः स्वामी शब्द का प्रयोग औचित्यपूर्ण है। आजकल अव्रती को भी स्वामी कहते हैं। दरिद्री को राजा कहते हैं, जैसे आँखों के अंधे नाम नयनसुख।" क्षुल्लक रूप में दर्शन उत्तूर पहुँचकर महाराज को देखते ही हमारी आँखों में पानी आ गया। महाराज ने कहा-“यहाँ क्या रोने को आये हो ? तुमको भी तो हमारे सरीखी दीक्षा लेनी है। रोते क्यों हो?" हम सब चुप हो गए। हमने रसोई तैयार की। हमारे चौके में महाराज का आहार हुआ। हमने आहार में गोवा चे आम्बे (गोवा के आम) भी महाराज को दिये थे। प्रस्थान देवप्पा स्वामी ने हमें कहा कि यह छोटा-सा ग्राम है, अतः चातुर्मास के लिए तुम शांतिसामर महाराज को निपाणी की तरफ ले जाओ। उस समय कुंमगोंडा ने महाराज की दीक्षा समारम्भ में खर्च हुई सामग्री आदि का मूल्य उत्तूर वालों को देकर महाराज के साथ में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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