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________________ ४६५ श्रमणों के संस्मरण आचार्यश्री की विरक्ति का क्रम मैंने कहा-“आचार्य महाराज की विरक्ति तथा आत्म-साधना पर कुछ प्रकाश डालिए, क्योंकि आप ही इस विषय में प्रामाणिकतापूर्वक कथन कर सकते हैं।" वर्धमान महाराज ने कहा-“घर में कपड़े की दुकान पर कुंमगोंडा तथा महाराज बैठते थे। मैं खेती का काम देखता था। मैं उपवासादि नहीं करता था। पिता की महाराज ने तथा मैंने सेवा की । उनकी मृत्यु के उपरान्त महाराज चार-पाँच वर्ष घर में और रहे, कारण मातुश्री जीवित थी। महाराज बहुत उपवास करते थे। उनको उपवास करते देख माताजी भी उपवास किया करती थी।" स्तवनिधि दर्शन का नियम माघ मास में माता की मृत्यु होने के पश्चात् महाराज के हृदय में वैराग्य-भाव वृद्धिंगत . हुआ। भोज से २२ मील दूर स्तवनिधि अतिशय क्षेत्र है। अन्य लोग उसे तेवंदी कहते हैं। महाराज ने प्रत्येक अमावस्या को स्तवनिधि जाने का व्रत ले लिया। वे बहिन कृष्णाबाई को साथ में भोजन बनाने को ले जाते थे। स्तवनिधि की यात्रा का आश्रय ले उन्होंने प्रपंच से छूटने का निमित्त ढूँढ़ निकाला था। वे स्तवनिधि में एक दिन ठहरा करते थे। वे ज्येष्ठ मास पर्यन्त स्तवनिधि गये। उन्होंने बहिन से कहा-"अक्का! अब हम अकेले ही स्तवनिधि जायेंगे।"अतः स्वयं भोजन साथ में रखकर ले गये। महाराज ने कुंमगोंडा से कह दिया था कि मेरा भाव व्यापार का नहीं है। उत्तूर में देवप्पा स्वामी का दर्शन स्तवनिधि के निमित्त ये घर से गये थे, किन्तु इनका मन वैराग्य से परिपूर्ण हो चुका था। इससे ये समीपवर्ती उत्तूर ग्राम में गये, जहाँ बालब्रह्मचारी मुनि देवेन्द्रकीर्ति महाराज, जिन्हें देवप्पा स्वामी कहते थे, विराजमान थे। संवत् १९७० के भाद्रपद में महाराज ने उत्तूर जाकर उनसे क्षुल्लक दीक्षा आदि का वर्णन ज्ञात किया। देवप्पा स्वामी का महाराज पर बड़ा वात्सल्य भाव था, कारण वे भोज में कभी-कभी माह पर्यन्त रहा करते थे। वे सातगोंडा की विरक्ति तथा धार्मिक प्रवृत्ति से सुपरिचित थे। जब महाराज ने दीक्षा धारण करने का अपना विचार व्यक्त किया, तो देवप्पा स्वामी को अपार खुशी हुई। उन्होंने लोगों से कहा था कि भोज से पाटील आया है, इनकी सब व्यवस्था करो। सातगोंडा पाटील (महाराज) ने देवप्पा स्वामी से प्रार्थना की कि अब हमें क्षुल्लक दीक्षा दीजिए। दीक्षा- मंडप की रचना देवप्पा स्वामी पाटील की परिणति से पूर्ण परिचित थे, अतः उनके इशारे पर उत्तूर में दीक्षा-मंडप सजाया गया। पाटिल को तालाब पर ले जाकर स्नान कराया गया। पश्चात् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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