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________________ छप्पन चारित्र चक्रवर्ती (वैराग्यशतक) के शब्दों में इस प्रकार रहती है - एकाकी निस्पृहो शान्तः पाणिपात्रों दिगम्बरः। कदाऽहं संभविष्यामि कर्मनिर्मूलनक्षमः॥८६॥ अर्थ : भगवन् ! मैं अकेला, स्पृहारहित, शान्त, करपात्र में भोजन करने वाला तथा कर्मो का मूलोच्छेद करने में समर्थ दिगम्बर मुनि कब बनूंगा? इस दिगम्बर अवस्था के प्राप्त होने पर मनुष्य अगणित चिन्ताओं तथा मनोव्यथाओं से मुक्त होकर उस उच्च शांति को प्राप्त करता है, जिसकी बड़े से बड़े नरेश, वैभवशालो गृहस्थ, श्रेष्ठ गौरवशील राजनीतिज्ञ आदि स्वप्न में भी कल्पना नहीं कर सकते। दुनिया को उलझनों में फंसे व्यक्ति को क्षण भर भी चैन नही मिलती है। लोकोपकार, लोकसेवा आदि सत्कार्यों के द्वाराआनन्द और अभ्युदय मिलते हैं, किन्तु निःश्रेयस, निर्वाण-मुक्ति, अविनाशो सुख का उपाय विश्व से विमुख होकर आत्मा की ओर उन्मुख होकर जीवन को वीतराग, वीतमोह बनाना है। अध्यात्मविद्या के रसिक विद्वान् महाकवि बनारसीदासजी का आत्मोन्मुखता की ओर प्रेरणा देने वाला भजन मनन योग्य है। अध्यात्म का महत्व न आँकने के कारण कोई-कोई विदेशी आध्यात्मिकता में 'World Flight'-दुनियाँ से दूर भागने की कल्पना करके अकर्मण्यता का दर्शन करते हैं, किन्तु यदि उन्हें यह पता चल जाय कि साधु तपोवन में जाकर चुपचाप अकर्मण्य नहीं बैठता है, वह क्रोध, मान, माया आदि अन्तरंग शत्रुओं से घोर संग्राम करता है, तब वे यह समझेंगे कि उस अवस्था को 'spiritual Flight'आध्यात्मिक-संग्राम कहना सुसंगत होगा। बनारसीदासजी कहते हैं - दुविधा कब जै हे या मन की॥टेक॥ कब निजनाथ निरंजन सुमिरौं, तज सेवा जन जन की ॥१॥ कब रुचि सौं पीवै दृग चातक, बूंद अखय पद धन की। कब शुभ ध्यान धरौं समता गहि, करूँ न ममता तन की ॥२॥ कब घट अन्तर रहै निरन्तर, दिढ़ता सुगुरु वचन की। कब सुख लहौं भेद परमारथ, मिटै धारना धन की ॥३॥ कब घर छाँड़ि होहु एकाकी, लिये लालसा वन की। ऐसी दशा होय कब मेरी, हौं बलि बलि वा छन की ॥४॥ गांधीजी राजनैतिक नेता होते हुए भी गहरी आध्यात्मिक रुचि वाले सत्पुरूष थे, इसो से उन्होंने इग्लैंड के तत्कालीन प्रधानमंत्री चर्चिल को एक पत्र लिखकर कहा था - "मेरो तीव्र इच्छा है कि मैं दिगम्बर साधु बनें, यद्यपि मैं अभी उस अवस्था को प्राप्त नहीं कर सका हूँ।" वैभवपूर्ण जीवन व्यतीत करने के स्थान में जो व्यक्ति एक झोपड़ी में रहकर १. कहीं-कहीं, "कदाशंभो" भी पाठ मिलता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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