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________________ श्रमणों के संस्मरण सामोदैर्भूजलोद्भूतैः पुष्पैर्यो जिनमर्चयति । विमानं पुष्पकं प्राप्य स क्रीडति यथोप्सितम् ।। इस आगम के प्रकाश मे पुष्पों द्वारा भी भगवान् की पूजा का निषेध नहीं होता है। जिस सिद्धपूजा को श्रावक लोग बड़े चाव से पढ़ते हैं, उसमें भी मंदार, कुंद, कमल आदि वनस्पति से उत्पन्न पुष्पों द्वारा सिद्धचक्र की वंदना की गई है : मन्दार-कुंद -कमलादिवनस्पतीनां, पुष्पैर्यजे शुभतमैर्वरसिद्धचक्रम् ॥ अभिषेक का महाफल पद्मपुराण की भाषा-टीका में दौलतरामजी ने लिखा है-“जो नीरकर जिनेन्द्र का अभिषेक करें, सो देवनिकर मनुष्यनितै सेवनीक चक्रवर्ती होय, जाका राज्याभिषेक देव-विद्याधर करें। अर जो दुग्ध करि अरहंत का अभिषेक करें, सो क्षीरसागर के जल समान उज्ज्वल विमान विर्षे परमकांति धारक देव होय, बहुरि मनुष्य होय मोक्ष पावै। अर जो दधिकर सर्वज्ञ वीतराग का अभिषेक करै, सो दधि समान उज्ज्वल यशकू पाय करि भवोदधि कू तरै। अर जो धृतकर जिननाथ का अभिषेक करै, सो स्वर्ग विमान में महा बलवान देव होय परंपरा अनंतवीर्यकू धरै। अर जो ईख रसकर जिननाथ का अभिषेक करै, सो अमृत का आहारी सुरेश्वर होय नरेश्वरपद पाय मुनीश्वर होय अविनस्वर पद पावै। अभिषेक के प्रभाव करि अनेक भव्यजीव देव अर इंद्रनिकर अभिषेक पावते भए, तिनकी कथा पुराणनि में प्रसिद्ध है।" मूल संस्कृत ग्रन्थ के ये पद्य पढ़ने योग्य हैं - अभिषेकं जिनेन्द्राणां कृत्वा सुरभिवारिणा । अभिषेक मवाप्नोति यत्र यत्रोपजायते ॥१६५ ।। अभिषेकं जिनेन्द्रणां विधाय क्षीरधारया। विमाने क्षीरधवले जायते परमद्युतिः ॥१६६।। दधि-कुंभर्जिनेन्द्राणां यः करोत्यभिषेचनं । दध्याभ-कुट्टमे स्वर्गे जायते स सुरोत्तमः॥ १६७ ।। सर्पिषा जिननाथानां कुरुते योभिषेचनम् । कांतिद्युति प्रभावाद्यो विमानेशः स जायते ॥ १६॥ अभिषेकप्रभावेण श्रूयंते बहवो बुधाः । पुराणेनंतवीर्याद्या धुभूलब्धाभिषेचनाः ॥ १६६।। वरांगचरित्र में लिखा है-"जन्म, जरा, मृत्यु आदि की शांति के लिए जल चढ़ाते हैं। विषयवासनाओं को सर्वथा मिटाने के लिए दूध से पूजा करते हैं। दधि के द्वारा पूजा करने से कार्यसिद्धि होती है। क्षीर पूजा से पवित्र स्थान मोक्ष में निवास होता है।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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