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चारित्र चक्रवर्ती
उपाय
"उस सम्यक्त्व का उपाय क्या है ? प्रशम, संवेग, अनुकंपा और आस्तिक्य ये चार गुण सम्यक्त्वी के हैं। कषाय का उपशांत होना प्रशम है। उसका क्षय, क्षीण-कषाय नाम के १२वें गुणस्थान में होता है। केवलज्ञान होने पर कषाय नष्ट हो जाता है।"
उन्होंने कहा-“अग्नि पर राख डालने पर वह घात नहीं करती। इसी प्रकार कषायों के उपशम होने पर होता है।"प्रसंगवश महाराज ने कुंथलगिरि में दिवंगत लोणंद की बाई का उल्लेख करते हुए कहा-“वह भोली सौम्य, सरल बाई थी। फार चांगली होती। १६ दिन के पूर्व वह मर गई। क्या तुम नहीं मरोगे? यह अनित्य भावना सदा करनी चाहिए। इससे विषयों में वैराग्यभाव होता है, इसे संवेगगुण कहा है।" अनुकम्पा
"अनुकम्पा में एक इन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक पर दया की जाती हैं किसी जीव को दुःख नहीं देना चाहिए। खरा करुणाभाव मनुष्य पर्याय में होता है। तिर्यञ्चों में करुणा नहीं होती। कहाँ जीव जीव को खाता है। नरक में करुणा कहाँ है ? देवों में हिंसा का सम्बन्ध नहीं है, इसलिए वहाँ जीव-दया का प्रश्न नहीं उठता। यह स्मरण रखना चाहिए कि ऋण, हत्या और बैर कभी नहीं छूटते, इसलिए वैर-विरोध छोड़ अनुकम्पा धारणा करना चाहिए।" आस्तिक्य
"आस्तिक्य नाम का गुण महान् कठिन है। जिनेन्द्र भगवान् की वाणी में प्रगाढ़ श्रद्धा . होना उसका स्वरूप है।"
प्रसङ्गवश महाराज ने कहा-“दशाध्याय सूत्र में द्वादशांग का सार भरा है। गणधरदेव १२ सभा में उपस्थित जनता को धर्म बताते थे। कुन्दकुन्दस्वामी ने कहा है- जिसके भेद-विज्ञान है, उसे सम्यक्त्वी जानना चाहिए। प्रत्येक शरीर में आत्मा पृथक् है। भाव मिथ्यात्व के कारण जीव अजीव को एक मानता है। जड़ वस्तु आत्मा से अन्य है। दोनों
को एक बोलना मिथ्यात्व है।" दिगम्बरपना ___ महाराज ने कहा-"प्रथमानुयोग में बताया है, पहले राजाओं की दीक्षा होती थी। आज गरीब ने दीक्षा ली, तो सोचा जाता है कि उसका पेट नहीं भरता होगा। कालदोष से साधु की उत्पत्ति का मूल्य नहीं है। दिगम्बर अवस्था मोक्ष नहीं है। यह मोक्ष का निमित्त है। मिट्टी से घड़ा बनता है, कुम्भकार निमित्त है। अग्निसंस्कार भी आवश्यक निमित्त है। इसी प्रकार दिगम्बर पर्याय निमित्त है। इसके बिना केवलज्ञान नहीं है।"
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