SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 501
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३८६ सल्लेखना सेवक की स्मृति __ पहले नसलापुर के जैनबन्धु श्री हनगोंड़ा ने बड़ी भक्ति पूर्वक महाराज की सेवा की थी। सल्लेखना के १९ वें दिन सहसा महाराज को उनकी स्मृति आ गई। उसी समय हनगोंडा ८० वर्ष के हो गये थे। यहाँ महाराज को उसकी याद आयी, उधर वह एक दिन पूर्व ही कुंथलगिरि आ गये थे। वे महाराज की सेवा में पहुँचे। अमृतवाणी उन्होंने परम करुणा-भावपूर्वक उससे कहा-“तुमने हमारी बहुत सेवा की।" यह कहकर उन्होंने आशीर्वाद दिया। वे फूटफूट कर गुरुचरणों की ममता के कारण रोने लगे। महाराज ने सांत्वना के यह शब्द कहे-“अरे यह संसार असार है। दुःख करने में सार नहीं है।" गुरुदेव की वाणी सुनकर वे गुरुचरणों के प्रेमी ग्रामीण कुटी के बाहर आ गये। विशुद्ध स्मरण शक्ति ___ सल्लेखना के समय ८४ वर्ष की आयु में लम्बे उपवासों के होते हुए भी महाराज की स्मृति आदि पूर्ववत् शुद्ध थी। अभिषेक हेतु आदेश वे भगवान् का अभिषेक देख रहे थे। समाधि का वह १८ वाँ दिन था महाराज ने प्रबंधकों से कहा था, "जब तुम लोग पूजा की बोली द्वारा हजारों रुपया वसूल करते हो, तब अभिषेक के लिए केशर, दूध, दही आदि के परिमाण में क्यों कमी करते हो।" दूसरे दिन से बड़े वैभव पूर्वक अभिषेक होने लगा। उस अभिषेक को ध्यान पूर्वक देखने पर उनके हृदय को बड़ा संतोष मिलता था। विचारणीय ___ यदि वह घी, दूध, दही आदि के द्वारा किया गया जिनेन्द्र का अभिषेक आचार्यश्री की अत्यंत विरक्त तथा यम-सल्लेखना के शिखर पर समारूढ़ आत्मा को शांति प्रदान न करता तो वे देह की क्षीण अवस्था में क्यों बहुत समय बैठकर अभिषेक दर्शन में अपना बहुमूल्य समय देते? आचार्यश्री की प्रवृत्ति आगम विरुद्ध कभी नहीं रही है। अत: इस कार्य में हमारा कर्तव्य है कि क्षपकराज की जीवनी से अपने कल्याण की बात ग्रहण करें और पक्ष मोह को छोड़ें । उनके चरणों का अनुगमन करना श्रेयस्कर है। वैराग्य-भाव कुछ विवेकी भक्तों ने गुरुदेव से प्रार्थना की थी-“महाराज अभी आहार लेना बन्द मत कीजिए । चौमासा पूर्ण होने पर मुनि, आर्यिका आदि आकर आपका दर्शन करेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy