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________________ ३७७ चारित्र चक्रवर्ती वह चुप रही। तब पूछा, तू काय आई ची आहेस (तू क्या माता की है)?' उसने कहा-“नहीं।" फिर कहा-“बापाची (क्या पिता की है)?" उसने फिर नहीं कहा। फिर पूछा-“किसकी है ?" उसने कहा, “मी माझी (मैं अपनी हूँ।)" यह सुनते ही आचार्यश्री बहुत आनन्दित हो बोले-“इस बेटी ने मुझे समयसार सिखाया। वास्तव में यह जीव दूसरे का नहीं है, यह स्वयं अपना है।" इसके पश्चात् गुरुदेव की इच्छानुसार उस बालिका को उचित पुरस्कार दिया गया था। महत्त्वपूर्ण वार्तालाप सत्ताईसवें उपवास के दिन भट्टारक लक्ष्मीसेन स्वामी, कोल्हापुर संस्थान ने आचार्य महाराज से पूछा-“महाराज ! शान्ति तो है ?" महाराज-“पूर्ण शांति है, शरीर में भी शान्ति है।" भट्टारक-"आप पुण्यवान् हैं। आपके पुण्य-प्रभाव से ही शांति है।" महाराज-“बाबा ! हमारा पुण्य नहीं है। भगवान् देशभूषण कुलभूषण के प्रभाव से ऐसा है।" ऐसी पवित्र श्रद्धा गुरुदेव की थी। दानवीर श्री भूमकर बारसी - कुंथलगिरि में आने वाले हजारों भाई ऐसे थे, जो अकेले आते थे। उनके भोजन का प्रबन्ध करने की उदारता बारसी के उदारहृदय विवेकी तथा दानशूर सेठ बालचंद लालचंद भूमकर ने की थी। श्री भूमकर की दानशीलता सचमुच में अपूर्व थी। श्रेष्ठ साधुराज शांतिसागर महाराज की सल्लेखना अलौकिक थी। उन गुरुदेव के दर्शनार्थ हजारों भाई आते-जाते थे। श्री भूमकर ने यह सूचना कर दी थी कि जिन भाई का प्रबन्ध न हो, वे सब हमारे खास भोजनालय में पधारकर भोजन करें। यह बुद्धिमत्तापूर्ण दानशीलता सराहनीय है। यह सामयिक विवेकपूर्ण दान अविवेकपूर्ण विपुल, लोकप्रशंसित दान की अपेक्षा बहुत ऊँचा और श्रेयोनुबंधी कार्य था। द्रव्यों के प्रमाण पर दान की उच्चता निर्भर नहीं रहती है। आज तो संघपति के दान का गौरवपूर्वक स्मरण किया जाता है उसका कारण उसके द्वारा सम्पन्न होने वाला श्रेष्ठ कार्य था। श्री भूमकर ने बहुत ही समयोचित तथा आदर्श कार्य किया था। इस सम्बन्ध की चर्चा भट्टारक जिनसेन स्वामी ने आचार्य महाराज से की, तब महाराज बोले-“बहुत पुण्य का काम किया है। अन्नदान से जीव सुखी होता है।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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