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________________ ३६८ सल्लेखना इस वर्णन को बाँचते समय वाचक के हृदय में ऐसा ही लगेगा, मानों वह ऐसे काल में पहुँच गया है, जहाँ संयम की सुधाधारा से समाज का हृदय धुला करता था। और महापुण्यशाली तीर्थंकर, चक्रवर्ती आदि श्रेष्ठ पुरुषों का सद्भाव था। कर्म का विपाक विचित्र होता है। श्रीजनगोंडा पाटील का सन् १९५६ में स्वर्गवास हो गया। वे मुझसे कहते थे कि शास्त्राध्ययन हेतु मैं मोरेना जाकर शीघ्र दीक्षा लेने की तैयारी कर रहा हूँ। महाराज की प्रत्येक चेष्टा संयम को प्रेरणा प्रदान करती थी। उनके विनोद में भी आत्मा को प्रकाशदायिनी सामग्री मिला करती थी। २८ अगस्त को क्षु. सिद्धासगरजी की दीक्षा हुई थी। नवीन क्षु. जी ने महाराज के चरणों में आकर प्रणाम किया और महाराज से क्षमायाचना की। महाराज बोले-“भरमा ! तुमको तब क्षमा करेंगे, जब तुम निर्ग्रन्थ दीक्षा लोगे।" विनोद में संयम की प्रेरणा ऐसी ही कल्याणदायिनी मधुर वार्ता एक कोल्हापुर के भक्त की है। उनका नाम बाबूराव मार्ले है। सम्पन्न होते हुए संयम पालना और संयमियों की सेवा-भक्ति करना उनका व्रत है। वे दो प्रतिमाधारी थे। वारसी से महाराज कुंथलगिरि को आते थे। महाराज का कमण्डलु हाथ में लेकर गुरुदेव के पीछे-पीछे चला करते थे। एक बार वे महाराज का कमण्डलु उठाने लगे, तो महाराज ने कह दिया-“तुम हमारे कमण्डलु को हाथ मत लगाना। उसे मत उठाओ।" ये शब्द सुनते ही मार्ले चकित हुए। . __ महाराज कहने लगे-“यदि दीक्षा लेने की प्रतिज्ञा करने का इरादा हो, तो कमण्डलु लेना, नहीं तो हम अपना कमण्डलु स्वयं उठावेंगे।" वे भाई विचार में पड़ गए। महाराज के पवित्र व्यक्तित्व ने उस आत्मा के अंत: करण पर प्रभाव डाला। वे बोले-“महाराज! कुछ वर्षों के बाद अवश्यमेव मैं क्षुल्लक की दीक्षा लूँगा। महाराज को सन्तोष हुआ। कुतर्क का समाधान यहाँ कोई यह कुतर्क कर सकता है, कि महाराज का ऐसा आग्रह करना अच्छा नहीं लगता। जिनको संयम या व्रत लेना होगा, वे स्वयं लेंगे। ऐसी प्रेरणा तथा आग्रह ठीक नहीं है। शान्तभाव से विचार करने पर विदित होगा कि सन्मार्ग पर चलने के हेतु जीव को प्रेरणा देना आवश्यक है। पतन की ओर किसी को उपदेश की जरूरत नहीं पड़ती है। जल की धारा स्वत: नीचे की ओर जाती है, उसे ऊँचा उठाने के लिए और ऊपर की भूमि पर पहुँचाने के लिए विशेष बल तथा शक्ति की आवश्यकता पड़ा करती है। यही हाल जीव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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