SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 464
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५२ चारित्र चक्रवर्ती मैसूर के नरेश द्वारा भक्तिपूर्वक वंदना ___ “वह नरेश बड़ा धार्मिक था। पहले कृष्णराज महाराज ने बड़े भाव-भक्ति पूर्वक बाहुबली स्वामी की वीतराग छवि का दर्शन किया, पश्चात् रुपयों से भरी हुई एक चाँदी की थाली लेकर भगवान् के चरणों का वंदन किया। इसके अनन्तर थाली को भी भगवान् के चरणों में चढ़ाकर उन्होंने भगवान् के चरणों में साष्टांग प्रणाम किया। बहुत गम्भीरता पूर्वक दर्शन के उपरांत भगवान् की ओर दृष्टि डालते हुए बिना पीठ किये हुए विनयपूर्वक धीरे-धीरे पीछे आये तथा पर्वत से नीचे उतर आए।" एक समृद्धशाली नरेश द्वारा रजत मुद्राओं से पूर्ण रजतपात्र द्वारा भगवान् गोम्मटेश्वर की पूजा तथा अभिषेक का दृश्य सचमुच में बड़ा रम्य रहा होगा, इसी कारण आचार्य महाराज को यह बात जैसी की तैसी याद रही। मुनि अनंतकीर्तिजी से भेंट श्रवणबेलगोलामें उनको मुनिराज अनंतकीर्ति निल्लीकार का दर्शन हुआथा। अनंतकीर्ति महाराज ने एक विशेष संदेश इनके द्वारा कोल्हापुर के दानवीर धार्मिक श्रीमंत सेठ भूपालप्पा जिरगे के पास भेजाथा। उसमें उन्होंने उत्तरभारत की यात्रा की भावना प्रदर्शित की थी। अनंतकीर्ति महाराज का स्वर्गवास सन् १९२१ के लगभग मोरेना में हुआ था। जीवन का क्या भरोसा । एक दिन अनुप्रेक्षा पर मैं विवेचन कर रहा था। उस समय महाराज ने सुनाया था-"इस संसार की अनित्यता का हम रोज विचार करते है। एक समय एक व्यक्ति ने भक्तिपूर्वक हमें आहार कराया। उसके अनन्तर वह अपने घर गया। यहाँ भोजन करने को एक ग्रास हाथ में लिया ही था कि तत्काल उसके प्राण चले गये । वह अकाल मरण की घटना कोगनोली ग्राम में हुई थी।" यथार्थ में जगत् की इस गतिविधि के कारण सत्पुरुष विरक्ति धारण करते हैं। लोगों को कल्याण की नहीं सूझती बंबई के संघपति सेठ दाडिमचन्दजी ने लोणन्द आकर प्रभात में आचार्यश्री को प्रणाम किया। उस समय महाराज को यह समाचार ज्ञात हुआ कि उक्त सेठ जी की नातिन का पति एक दिन की बीमारी में मर गया। इस तरह उनकी नातिन के सिर पर बाल-वैधव्य की विपत्ति आ गई। उस समय एक सज्जन ने आचार्यश्री से कहा-“महाराज, यदि आप अवधिज्ञानी होते तो लोग अपने भविष्य का ज्ञान करके ऐसी दुर्घटनाओं से सतर्क रहते।" इस पर महाराज ने कहा-“आज यदि अवधिज्ञानी भी होते तो क्या विशेष बात ज्ञात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy