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आमुख
इकतालीस प्रवृत्तियाँ मुझे नहीं छोड़ती। ऐसे लोगों की बुद्धि को ठिकाने लगाना अत्यन्त कुशल व्यक्ति का काम है। कहते हैं, गुजरात में एक सहृदय साधु पहुंचे। उन्होंने काठियावाड़ के कुछ ठाकुरों को दारू (मद्य) त्यागने को कहा। एक ने कहा-“मैं तो दारू त्यागने को तैयार हूँ, किन्तु क्या किया जाय, यह दारू मुझे नहीं छोड़ती।” साधु ने ठाकुर से कहा, “कल आकर मिलो, फिर विचार करेंगे।" दूसरे दिन प्रभात में ठाकुर वहाँ पहुँचा। ठाकुर ने आवाज लगाकर महाराज को बुलाया। वे स्वामीजी कहने लगे-“क्या बताऊँ, मैं तो आना चाहता हूँ, किन्तु इस घर के खम्भे ने मुझे पकड़ लिया है। ऐसा कहते हुए वे दोनों हाथों से एक खम्भे को पकड़े हुए थे। ठाकुर ने कहा- “खम्भे से हाथ हटाइये।" हाथ हटाते ही स्वामीजी खम्भे से छूट गए। उन्होंने ठाकुर से पूछा, क्यों भाई ! खम्भे ने मुझे पकड़ा था, या मैंने उसे पकड़ा था।"ठाकुर महोदय ने तुरन्त कह दिया-“खम्भे ने आपको नहीं पकड़ा था। आपने ही स्वयं उसे पकड़ा था। इस पर स्वामीजी ने समझाया कि इसो प्रकार दारू ने तुम्हें नहीं पकड़ा है, किन्तु तुमने उसको पकड़ लिया है। ठाकुर को अपनो भूल समझ में आ गई और उसने उस व्यसन को सदा के लिए छोड़ दिया। इसी प्रकार मनुष्य अपनी मानसिक दुर्बलता को दूर कर सत्संकल्प का आश्रय ले, तो सहज हो अनेक हानिप्रद प्रवृत्तियों को छोड़ सकता है। जैनधर्म इसी कारण जीव के सुख-दुःख, उत्थान-पतन का उत्तरदायित्व दूसरे पर न लादकर जीव को ही दोषी कहता है।
स्वयं कर्म करोत्यात्मा स्वयं तत्फलमश्नुते।
स्वयं भ्रमति संसारे स्वयं तस्माद्विमुच्यते॥ वर्तमान युग का मानव लौकिक-जगत् में अलौकिक कार्य करता-सा दिखाई देता है, किन्तु विषयों की दासता के परित्याग के क्षेत्र में वह आगे बढ़ने के स्थान में पीछे हटता जा रहा है। एक सर्वजनसम्मत रात्रिभोजन की प्रवृत्ति की हानि पर विचार किया जाय, तो शास्त्रों से भी महान् अनुभव तथा प्रत्यक्ष बोध द्वारा इसकी हानि का सबको पता है, फिर भो साधनसम्पन्न व्यक्ति भी इस आदत से नहीं छूटता। एक बात भारत सरकार द्वारा मुद्रित बालभारती में छपी थी-“एक बार एक लड़की उस दूध को पी गई, जिसमें एक मक्खी गिर गई थी।"रात्रि को भोजन करने में ऐसी बातें अनेक बार हो जाती हैं, क्योंकि सूर्य-प्रकाश के अभाव से दीपक के उजेले में अनेक कीड़े स्वयं भोजन में आकर आत्मसमर्पण करते हैं। कभी-कभी उनका शरीर स्थूल रहा, तो दृष्टिगोचर हो गए और बहुधा छोटे शरीर वाले हुए, तो पता भी नहीं चलता कि रात्रिभोजन में उनका क्या हो गया। “उस लड़की ने बिना देखे दूध को पी लिया। मरी मक्खी पेट में चली गई। उससे उस लड़की का बुरा हाल हुआ। वह मर गई। डाक्टरों ने उसकी बीमारी समझने का प्रयत्न किया था, किन्तु पता नही चल पाया। जब उसके शव की परीक्षा की गई, तब पता चला कि मक्खी जहरीली थी। उसके साथ
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