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________________ प्रतिज्ञा ३०२ काम पूरा करने पर अपनी मजदूरी माँगता है। आपके १९४८ अगस्त से अन्नत्याग से हमने सभी कार्यों को बंद कर दिया था, अब काम पूरा हो गया। इससे आपसे हमें अपनी मजदूरी चाहिए। मजदूरी यही है कि आप अब अन्न ग्रहण करें।" अकंपन ऋषि महाराज बोले-“यह बच्चों का खेल नहीं हैं। अभी हम हाईकोर्ट का सील लगा फैसला देखेंगे और विचारेंगे। सुप्रीमकोर्ट की अपील की अवधि को भी समाप्त होने दो।" उस समय म्याद आदि के प्रश्नों को ध्यान में रखते हए हमें रक्षाबंधन का दिन आहार के लिए उपयुक्त दिखा। हमने सोचा, रक्षाबंधन की पुनरावृत्ति-सी हो जायगी, कारण इस युग में अधर्म के आतंक के समक्ष अकंपित रहने वाले आचार्य महाराज भी अकंपन आचार्य तुल्य लगते थे। अभी हाईकोर्ट का निर्णय समक्ष नहीं था, इससे हम लोगों को चुप होना पड़ा। तीन-चार रोज आचार्य महाराज के चरणों के समीप बारामती में पुनः रहने का सौभाग्य मिला। हमने देखा, अब आचार्य महाराज की आत्मा पूर्णतया निर्द्वन्द्व हो गई। उनके मन में बड़े उज्ज्वल विचार आने लगे। तीन सप्ताह के प्रवास के पश्चात् सिवनी आना हो गया, किन्तु बार-बार मन में यही लालसा थी कि वह दिन धन्य होगा, जब ये महान् तपस्वी आहार ग्रहण करेंगे। हाईकोर्ट के निर्णय की कापी भी देख ली। उसमें आचार्यश्री की प्रतिज्ञा की पूर्ति देखकर हमने बारामती के चंदूलालजी सराफ आदि को लिखा कि महाराज से आहार के लिए प्रार्थना करें, तो उत्तर निराशापूर्ण मिला। हमने श्री फूलचंद कोठडिया वकील, पूना तथा तलकचंदजी वकील को पत्र देकर आग्रह किया कि महाराज आप लोगों के अत्यन्त समीप हैं, आप उनके चरणों में जाकर आग्रह कीजिए कि आपको अन्न आहार न ग्रहण करना ठीक नहीं है। सारे भारतवर्ष का समाज चिंतायुक्त है। रक्षाबंधन का दिन बड़ा श्रेष्ठ होगा। दोनों धार्मिक वकीलों ने गुरुचरणों में पहुँच कर प्रार्थना की, लोगों ने भी अत्यधिक आग्रह किया। १६ अगस्त सन् १९५१ का रक्षाबन्धन तब महाराज ने कहा- "हमें अपनी तो फिकर नहीं है, किन्तु हमारे निमित्त से हजारों व्यक्तियों ने जो त्याग कर रखा है, उनका विचार कर हम कल आहार कर लेंगे।" यह बात ता. १५ अगस्त को ज्ञात कर बारामती के भाइयों को अपार आनन्द हुआ। हमें ता. १६ के प्रभात में तार मिला"Acharya Maharaj taking Anna today." इसे पाते ही अवर्णनीय आनन्द मिला, किन्तु शंकाशील मन में यह विचार आया, कि अंग्रेजी की कहावत"There is many slip between the lip and the cup." के अनुसार अभी भी अन्तराय आ सकता है। आचार्य महाराज आज अन्न ग्रहण करेंगे।" 'करेंगे' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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